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(१६) हाथें घर मंमाण ॥४॥ हवे जयश्रीना नाग्यथी, सुत उपन्यो गर्नवास ॥ कयवनाने पण दुन,आव्यां पूरो मास ॥ ५ ॥ ॥ ढाल अगीधारमी ॥ राग सोरत ॥रहो
रहो रहो रहो वालहा॥ ए देशी॥ ॥नाह नगीनो एक दिने,देखी अति दलगीर लाल रे॥ जयश्री नारी मलपती, थावी प्रीतम तीरलाल रे॥१॥ पदमणी प्रिय नणी, हसता देखी सदी व लाल रे॥धाज न बोलो क्युं हसी, प्रीतम मुज जीव लाल रे ॥ प्रो० ॥॥ चिंता का नवी वसी, कांतो मुजशु रीश लाल रे॥ बाज निहेजो वालहो, रूगे विश्वावीश लाल रे ॥ पूजे ॥३॥ खासी दासी हूँ ताहरी, खुन पड्यां द्यो शीख लाल रे ॥ विण बो ल्या जीवू नहीं, न नरं पाठी वीख लाल रे ॥ ॥॥ प्रीतम कहे सुण पदमणी, तोशु केही रीश ला ल रे ॥ तुं घर मंमण माहरे, हियडे रहे निश दीस लाल रे ॥ पूजे ॥ ५ ॥ तोमन मोही रयुं, नमर न्यु फूल सुंगंध लाल रे ॥ चिंता धननी मुज मनें, दोहिलो ले घर बंध लाल रे । पू०॥६॥ कुल घर महोटुं थापj, वड वडां कीधां काम लाल रे ॥पा
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