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(३५) नाम गम जाशे सदु, तिणे मत करजो शोक ॥४॥ घर आणी को राखश्यां, नवलो नर अनूत ॥ पुत्रज होशे ताहरें,रदेशे घरनुं सूत्त ॥ ५॥ कहे वहूरो सासू जणी, की केम अकाज ॥ कहे मोशी रता कांड न लाज ॥ ६ ॥
॥ ढाल चौदमी॥ चंज्ञवलानी देशी ॥ ॥ वढू चारे साथें करीरे, मोसी जाली मांगो॥न गरी सारी सोजती रे, यावी साथमां रंगो ॥ यावी साथमा रंग सुरंगी, देखे नर सहु दुइ दुइ खंगी। केई नंगी केई जंगी, नजर न आवे को सुचंगी॥१॥ जी कुमरजीजीरेजी ॥ पूरव पुस्य पसाय, सुखसंपत्ति मले रे॥रंग रली नबरंग,आज सदु फले रे॥धा॥ एयांक ण॥ देवल मांहे ते गई रे,सूतो दीगे सेजो। रूप रू डुं रडीयामणुं रे, कयवन्नोधरी हेजो ॥ कयवन्नो धरी हेज उन्हायो, पण नवि जाग्यो निंदें गयो ॥ तिम हिज आल्यो मंच बिबायो, घरमां मेली रंग मचायो ॥जी० ॥ ॥ चारे नारी चउपखें रे, नारी बेठी मं चो॥ कयवन्नो हवे जागीयो रे, देखे तेह प्रपंचो ॥ देखे तेह प्रपंच विलासो, ए कुण ख्याल विनोद त मासो॥ महोटा मंदिर महेल मेवासो,चिहुं दिशि जो
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