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(३३)
वे यासो पासो॥जी॥३॥ रंग रंगीला मालीयां रे, चित्रामारी बोलो ॥ जाणे विधातायें रच्यां रे, मोती जामर जोलो॥ मोती जामर जोल तेजाली, विच विच प्रोई लाल प्रवासी ॥ जब जब जाबख जूब रसा तीनला जला गोंख नली चित्रशाली ॥जी॥४॥ सखरा बांध्या चंडवा रे, मखमलरा पंचरंगो॥ नवनव नांतें जातरा रे, पाथरणां अतिचंगो ॥ पाथरणां य तिचंगा फलके, जरबाफ जाजम कसबी फलके ॥लां बी फूलनी माला ललके, धूप धाणानी सलीयां चल के ॥जी॥ ५॥ चंवदनी मृगलोचनी रे, नर यौ वनमें जेहो ॥ नासा दीप शिखा जिसी रे, सोवन व रणी देहो । सोवन वरणी देह रे सारी, घिदूं दिशि निरखे चारे नारी ॥ रूपें रुडी देव कुमारी, मानवणी जिण थामें हारी ॥जी॥ ६॥ पायें नेसर रणकणे रे, काने कुंमल सारो॥मकबेसर शिर राखडी रे, हि यडे नवसर हारो॥ हियडे नवसर हार रे सोहे, मोह नगारी मनटुं मोहे ॥ रंग रंगीली चित्तहुं चोहे, मुख दीनां ए दुःख विनोहे॥जी॥७॥ मगन हट देखि देखिने रे,मनमा करे विचारो॥ ए सुहणो के हुँ सही रे, याव्यो स्वरग मकारो॥ श्राध्यो स्वरम मकार रे
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