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(६५) ॥ ए ॥ आवी पर नपगारिणी, पाडोसण मनी चार ॥ बाल रोवाडे क्युं रोइनें, पूड़यां कहयो सुविचार ।। ॥ दा॥१०॥ दूध दी) एकण त्रिया,बीजी शालि अखंम ॥ घी सुरहो त्रीजीयें दीयो, चोथी बूरा खां म ॥ दा० ॥ ११ ॥ खीर रांधी मीतीतिणे, मनीरू डी सान्निधि ॥ कारण सदु मलियां पडो, तरत दुवे काम सिदि॥ दा०॥ १२ ॥ बेसाडी बालक नणी, मामी थाली स्नेह ॥ अमिय नजर नरीमायडी,खोर परीसे तेह ॥ दा॥१३॥ यति नन्ही जाणीकरी, देश गरे फंक ॥ पण चतुराइबालनी, न पडे खीरमां थंक ॥ दा० ॥ १४ ॥ जननी कारण नपने, घरथी बाहिर जाय ॥ अचिरज एक दुळ तिसें, ते सुगजो चित्त लाय ॥ दा० ॥ १५॥ नवितव्यता वशे नीप जे, गुनागुन कारज सिदि॥ ढाल कही सत्तावीशमी, जयतसी निश्चल बुद्धि ॥ दा० ॥ १६ ॥
॥दोहा॥ ॥ नंच नीच कुल विहरतो, दीणदेह गुण गेह।। यतिथि एक आव्यो तिसें, जंगम तीरथ जेह ॥ १ ॥ पानं तरे ॥ चंच नीच कुल विहरता,मुनिवर महिमा पात्र ॥ पावि चना तेहनें घरे,जंगम तीरथ यात्र ॥२॥
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