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रेहां, सखरो प्रनु परिवार ॥ श्री० ॥बे कर जोडी ना वयं रेहां, वंदना करुं वारंवार ॥ श्री० ॥ ५॥ कोडा कोडी के देवता रेहां, परिवरीया परिवार ॥ श्री०॥ पग तलें नव सोवन तणां रेहां,कमल रचे सुर सार ॥ श्री. ॥६॥ अति उँचो रतीयामणो रे हां,सहस जोयानो दंग ॥ श्री० ॥ गयणांगण ध्वज लहलहे रेहां, टाले कुमति पाखंग ॥ श्री० ॥ ७ ॥ ग्रामागर पुर विचरता रेहां, करता उग्र विहार ॥ श्री०॥ नग री राजगृही परिसरें रेहां, गुणशील वन डे सार ॥ श्री० ॥ ॥ नंदन वन सम शोहतुं रेहां,वेली र द मांझवा सार ॥ श्री० ॥ कोयलडी टदुका करे रे हां, नमर करे गुंजार ॥ श्री० ॥ ए॥ स्वामी यावी समोसस्या रेहां,निरवद्य सखरे गम ॥श्री॥ मलिया चनविद देवता रेहां, विरचे त्रिगडो ताम॥श्री॥१०॥ समवसरण शोहामणुं रेहां, तरु अशोक विकसंत ॥ श्री० ॥ चन्मुख चिहुँ सिंहासरों रेहां, बेठा श्री जगवंत ॥ श्री० ॥११॥ नामंगल पूठे नखं रेहां, दी पे तेज दिद॥ श्री०॥ तीन बत्र शिर शोनता रे हां, चामर ढाले इंद ॥ श्री० ॥ १२ ॥ वैर विरोध सहु उपशमे रेहां, रीजे सुणी सुविचार ॥ श्री॥ बेसे
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