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(७६) पदवी शोहे, संघ तणां मन मोहे जी ॥ सुगुरु पुण्य कलश गुन नामें,जाणीता गम गमें ज॥ध०॥१५॥ तास शिष्य जयतसी इंम बोले,नहीं कोई दानने तो ले जी॥ दान तणां फल दीसे चावां, दिन दिन अ धिक दीवाजा जी ॥धा१६॥ सरस ढाल न कोई पडती, त्रीश नपर एक चडती जी॥ पूरण सुगतां हियडु विकसे,धर्म करण मन उनसे जी ॥ध॥१७॥ इतिश्री कयवन्ना शाह शेठनी चोपाइ समाप्ता॥
॥ इति कवि जयतसीहत श्री कया
वना शाहनो रास संपूर्णः ॥
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