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ज्युं वरसाले वाहलीयां ॥धूजे धरणी गिरिवर वड गढ, शेष नाग तो सल सलीयां ॥ श्री० ॥१०॥ दिशि दिशि देश नंगाणां पडीयां, सीमाडा सदु खल नली या ॥ केई नाता केई त्राग, केश नमीया श्रावी कति यां ॥ श्री० ॥ ११ ॥ साथें अंतेनर लीघां सघलां, श्रीयनय कुमर बुद्धि बलीया ॥ साथै साह वलीक यवन्नो, सदुको प्रनु वंदण चलीयां ॥ श्री० ॥१॥ के हयगया गयगया केश, केश पाला केई चडियां ॥ केई पालखीयें केई रथ बेता, जन सदु वंदण पर वरीयां ॥ श्री० ॥ १३ ॥ समोसरण देखत सदु वि कस्या, धन्य दिन थाज वखत वत्तीयां ॥ हरख हि लोला चित्त कनोला, चंद चाहे सिंधु नबलीयां ॥ ॥ श्री० ॥ १५ ॥ प्रातीहारज थावे पेखत, कुमति गरव गुमान गतीया ॥नव्य जीवारा पातक गलियां, ज्यं पाणीमें कागतीयां ॥ श्री० ॥ १५ ॥ हाथीथी उतरीयो राजा, धागें पालो दुई पलीयां, जिनवर द रिसए चाह धरता, ढोल नहीं दूर्वा हलफलीयां ॥ ॥ श्री० ॥ १६ ॥ एक रंग दूओ पांचे इंश्य, वली मुनिशुं हिली मिलीयां ॥ चलीया रती ए नगवंत नेट ए, जीव तणां वंदित फलीयां ॥ श्री०॥१॥ श्रीवीर
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