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( ६३ )
कपट रोषनाव, बोडो जोडो मन वैरागनुं जी ॥ १३ ॥ म करो पराइ तात, पारकी निंदा नारक गति दीये जी ॥ धर्म ध्यान दिन रात, पालो निर्मल व्रत नियम खाखडी जी ॥ १४ ॥ एकलो याव्यो जीव, परजवें प
ए जाये एकलो जी ॥ तन धन सयण सदीव, सा थ न चाले को करणी विना जो ॥१५ ॥ ए संसार स्व रूप, जाणी प्राणी धर्म करो खरो जी ॥ जयतसी ढा ल धनूप, समजो बूको ए बवीशमी जी ॥ १६ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ जिनवर वाणी सांगली, प्रति बूऊया बहु लोक ॥ के श्रावक व्रत खादरे, केइ माहाव्रत जोग ॥ १ ॥ व ली विशेष जिन देशना, मीठी लागें जोर ॥ कयवन्नो मन हरखियो, जिम घन गाजे मोर ॥ २ ॥ याज म नोरथ सवि फल्या, याज जनम मुंज धन्य ॥ याज हू सुकृतारथो, इम उल्लस्यो कृतपुण्य ॥३॥ वांदी ने पूढे वली, मया करो महाराज ॥ में चुं दीधुं या चयुं, कहो पूरव जव खाज ॥ ४ ॥ लोकालोक प्र काश कर, केवल ज्ञान अनंत ॥ कयवन्ना यागल क हे पूरव जव विरर्तत ॥ ५॥
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