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रोगी सोगीरो सूत्त ॥
सुमा०॥१६॥ घर शूरो मठ पिंमीयो रे लाल, वात करे अदनत ॥सु बलीन बाटी नथले रे लाल, खाधो पीधो धन सूत ॥९॥ मा०॥१७॥ यतः॥ वस्त्रहीनोऽह्यलंकारो, घृतहीनं च नोजनं ।। कंठहीनंच गांधर्व,नावहीना च मित्रता॥१॥ धूत्ताधूत्त नंमा नंमः, बेलामांहि बयत ॥ एता बंदा चालवे, तोतुं नाह बयल ॥२॥ ढाल पूर्वती ॥ लूखो शूको नावे नहीं रे साल,ताजां धान्य घृत गोल॥सु०॥ अमल यानां रूडां लूगडां रे लाल,जोजें तेल तंबो ल ॥९॥ मा० ॥१॥ सरशे वरशे तो विना रे सा ल, जा पापणें घर बार ॥सु०॥ मावित्र मूषां ताह रां रे लाल, कर घर कुन याचार ॥सु०॥मा०॥१॥ ॥दोहा॥ संवन तिहां न जायें,जिहां कपटका हेत। ज्यांलो कली कणेरकी,तन राता मन श्वेत ॥ १॥ हं सा तो तब लग चुगे,जब लग देखे लाग ॥ लाग विदू णा जे चुगे,हंस नहीं ते काग ॥॥ बग उमाया बा पडा,क्षण सरोवर ण तीर ॥ हंस जमरा सव किम सहे, अमरष जाह शरीर ॥३॥ लीह नहीं लका नहीं, नहीं रंग नहीं राग । ते माणस तिम बंमियें, जिम अंधारे नाग॥॥कडुयां फलां कुमाएसा,जास
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