Book Title: Kayvanna Shethno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 47
________________ (४६) ःख दोहग दूरे टल्यां रे, सखरो जग सौनाग्य रें ॥ सो० ॥ ढाल अढारमी ए कही रे लाल, जयरंग जाग्युं नाग्य रे ॥ सो० ॥ ना० ॥ १५॥ ॥दोहा॥ ॥ नाम सवायुं नीसयुं, पसरी सबल प्रसिदि॥ पूरव पुण्य पसाग्ले, जडी वत्ती दिने सिदि॥१॥ मति संबाही पापणी, मांमया वगज व्यापार ॥ घर वाधी लखमी घणी, दिन दिन देदेकार ॥२॥ ॥ढाल गणीशमी॥ चतुर चितारोरूप चीतरे ॥देशी॥ ॥तिण अवसर तिण नगरमें रे, वाजे ढंढेरानो ढोल रे॥फिरतो चोराशी चावे चोहटे रे, बोले एह वा बोल रे॥१॥ बाजरे निवाजे राजा तेहनें रे, आरो जे हाथी बोडाय रे॥लहे अर्ध राज राजकुंवरी रे, जाणे जे कोई उपाय रे ॥ आज ॥२॥ सेंचाक गज श्रेणिकतणो रे, पाणी पीवा नदी मांहि रे॥ पेठो थाघो जलमां क्रीडतो रे, शुढ उलाले कमाहि रे॥आज०॥३॥ पग जालीने तास्यो माबले रे, स बलो तंतू जीव रे ॥ जोर होवे जलमा तेहर्नु रे, हा थी पाडे रीव रे ॥ आज ॥४॥ चतुर विवेकी जोग जोगीया रे, विद्यावंत कलावंत रे॥याणे महोरा ज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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