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(५३) पे सदु नारिने, बोरु तेडी दो थावे दरबार के ॥ तु से सदु जात्रा कीयां, रूसे नायाँ हो नारी सुत नार के॥धन ॥ ॥ सघनी यावीमलपती, गावे वा वे हो करे जेठी जात्र के ॥ तवजे बापजी मत रूसे, मूके नैवेद्य हो थागत ते मात्र के ॥अन ॥ ए॥ हवे मोकरडी मांगडी, जालीदाथें हो मग मगती दा ल के ॥ चारे वढू साथै मली, चाजे आगे हो चार न्हाना बाल के ॥अन॥ १०॥ दलवें हलवें हालती, थावी पेठी दो सदु देवल मांदि के ॥ मूरती मोहन वे लडी, बेठी दीती हो मन धरीय नमाहि के॥यन॥ ॥ ११ ॥ प्रत्यक्ष कयवनो तिसो, रूप रूड़े हो नख शिख आकार के ॥ पंचरंग वाघो पहेरणे, काने कुं मल हो शोहे हियडे हार के ॥अन०॥१२॥ जो जोइ बहू चारे हसी,मन नलस्यो हो विकस्यो वती गात के ॥ नयणें नयण मला रह्यां, जोती करती हो करे सफली जात के ॥अन०॥ १३ ॥ ते सूरत मूर ति देखीने,मोसी पोसी दो जगदीशनी नाल के॥ पा पें शंके पापिणी, रखे लागे हो इहां कोई जंजाल के॥ ॥धन॥१४॥ हियडु दटक्युं नवि रहे, मुखें नाखे हो नीशासा नारि के ॥ नयरों नीर करे घj, जाणे
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