Book Title: Kayvanna Shethno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 71
________________ (७०) व तणां रे, नरक तणा दातार रे ॥ सखरां फल संव र तणां रे, पामीले नवपार रे॥प्र० ॥४॥ वीर जिनेसर वांदीने रे, पोहोतो निज घरवास रे ॥ पुत्र कलत्र मित्र मेलीने रे, बोले एम नन्नास रे ॥प्र० ॥ ५ ॥ सूधो धर्म में सर्दह्यो रे, जाग्यो अथिर संसा र रे॥धधर्मथी कुःख उपजे रे, धर्म दूए नहार रे ॥ ॥प्र०॥ ६ ॥ राग देष रूडा नहिं रे, कडुथा कर्म वि पाक रे॥ विषयसुख विष सारिखा रे, विरुया जेह वा याक रे॥३०॥७॥को केहनो नहिं जगतमां रे, कारिमु सगपण एह रे ॥ वेला न लागे विहडतां रे, तडके पडयो जेम त्रेह रे॥प्र०॥ ॥ वीर जिनेस र आगलें रे, हवे हूँ लेइश दीख रे ॥ इंम कही बेटो थापीयो रे, निजपाटें द शीख रे॥3॥ए ॥ साते खेत्रे वावीयुं रे, सखरे चित्ता बीज रे। तो जिम मेह धर्मनो रे, विण गाजे विण वीज रे ॥०॥१०॥ दीन दीनने निस्तस्या रे, ममियो देदेकार रे॥ यश न पाने करी पोषीया रे, पहिराया परिवार रे ॥ प्र० ॥ ११॥ सुकुलिणी साते मली रे, कहे प्रीतमने वा त रे ॥ तुम विण घर शोने नहीं रे, जिम चंद विहू एी रात रे ॥प्र०॥ १२॥ तुम तननी अमें बंगहडी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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