Book Title: Kayvanna Shethno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 70
________________ (६ए ) जे अढलक दान ॥ वडबीज ज्युं फल-विस्तरे रे, वली लहीयें नोग प्रधान हो ॥रू०॥ २५ ॥ अनंत अनंत फल पामो रे,सुपात्र फले सुविशेष ॥ जयतसी ढा ल अहावीशमी रे, इणमें मीन न मेष हो ॥रू॥२६॥ ॥दोहा॥ ॥ पर उपगारी परमगुरु, संशय नंजण हार ॥ कयवन्ना बागें कह्यो, पूरव नव सुविचार ॥ १ ॥ सु णी पूर्व नव आपणो,दान तणां फल देख ॥ कयव नो नत्सुक थयो, धर्म करए सुविशेष ॥ २॥ ॥ढाल योगपत्रीशमी॥राग मारुणी ॥ राम लंकागढ लीनो, लइने बिनीषण दीनो॥ ए देशो॥ ॥ वीर तणी वाणी सुणी रे, मीठी अमिय समा न रे ॥ रंग नीनो साते धातडी रे, समज्यो चतुर सु जाण ॥ प्रतिबूजयो प्रति बज्यो हो कयवन्नो शाह ॥प्रति॥ जाणीने जिन मारंग सूधो, कयवन्नो शाह प्रति बज्यो ।ए थांकण॥१॥बे कर जोडी वीनवे रे, ए संसार असार रे ॥ तारो तारो प्रजो मुज नणी रे, लेश संयमनार रे॥॥॥ वीर कहे देवाणुप्रिया रे, मा प्रतिबंध करेह रे ॥ जीवितमां जाये घडी रे, पाबी नावे तेह रे ॥प्र० ॥३॥ अशुन फल आश्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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