Book Title: Kayvanna Shethno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३७) दू०॥११॥ काढे मोला ज्यु माकिणी,शंखिणी मोम्यो सोर ॥ व०॥ त्रोड फोड मामी घणी, वदुषां उपर गेर ॥व०॥ वर्॥ १२ ॥ पाली न रहे पापिणी,लाज शरम नहीं हाक ॥ सा० ॥ गाली रांझरा बोलडा, बो ले कडूया आक ॥ सा० ॥ वर्॥१३॥ बार वरसने बेहडे, लागी पनोती अंग ॥ सा ॥ जंग करे खाइ नंग ज्युं, रंगमें पाडयो नंग॥सा०॥ वर्॥१३॥ मोशी\ चाले न क्यु, नहीं वदुयारो जोर ॥ सा॥ सबला जीपे जग सही, निबला करे निहोर ॥सा॥ वर्॥१५॥ चारे नारि विचारीने, रतन ले जल कंत ॥सा॥ जल जाये जूडं फाटीने, गुण तीयांरो तंत ॥सा॥वहू॥१६॥ चारे लाडु मोटा कीया, घाल्यां र तन विचाल सा॥ मूकी उशीशे कोथली,नदिज मं चक हाल ॥साणावहू॥१॥ सासु कहे फासुं हवे, राखुं नहीं घरमांह ॥ सा०॥ बारे वरसें ते वली, हिज सारथ वाह॥ सा॥ वह ॥१७॥धावीप ज्यो तिए थानके, साथ सबल गज गाह ॥सा० ॥ निशि नर सूतो निंदमें, देखी कयवन्नो शाह सा॥ वहू० ॥ १ ॥ वढू उनाडी जगाडीने, उपाडयो ते मंच ॥ सा ॥ तिण देवलमें आणीने, मूक्यो तिण
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