Book Title: Kayvanna Shethno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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हलीमली शीख करी नारी जी, मूकती वलीनी शास ॥ फरी फरी जोवे मुख फेरीनेजी, रघु मनटुं पीयु पास ।। वहे०॥११॥ पाना वलतां पग बे लड़ थडेजी, मोहनी करम जंजाल ॥ जिम तिम आवे घर थापणेजी, सुखें गमावे काल ॥वहे॥१॥ दोहा॥ चाल सखी नए फॅपडे, साजन वलीया जेण ॥ मत कोई मीठो बोलडो, लागो दुवे तिणेण ॥१॥रे मंदि र रे मालोयां, हवे तुं मग न नरेश ॥ जिण कारण अमें यावतां, सो चाव्या परदेश ॥२॥ जुग विबुरत सारी मरत,यहे काठको प्रीति॥पै सजान विबुरे ना मरे, संब न एह विपरीत ॥३॥ मीन ढाल रमी मन तेरमीजी,जयतसी जयजय कार ॥ फलशे नाग्य न सौजाग्यशुंजी, ते सुणजो अधिकार ॥वहे ॥१३॥
॥ दोहा॥ ॥ दवे देवलमें चिंततो,घर घरणीरो हेज ॥ निशि नर सूतो निंदमा, कयवन्नो सुख सेज ॥१॥ क्विंत अपुत्रिन, कोई साहूकार ॥ परनवें पोहोतो प्रवहणे, आव्या सम्माचार ॥२॥ तियरीमाता पालीयो,पंथीनें धन बाप ॥ वद चारे मेली कहे, मत रोजो चुप चा प॥३॥ जो सनिलशे राजवी, तो लेशे धन रोक ॥
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