Book Title: Kayvanna Shethno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 29
________________ (१०) दोकडा पाखें लोनणी, रूती कडाका मोडे रे ॥ दा० ॥ ५ ॥ पैसा आइ माई कह्या, पैसा कामणगारा रे।। पैसा वाज करे वली, पैसे जिमण सारां रे॥दा० ॥६॥ कण न करुं शिर माहरे, शपथी रहे मुख का तो रे॥णथी नावे नीड्डी, शाथी सहीयें गालो रे ॥ दा० ॥ ७॥ नारी मंझण नाहलो, धरतीमंझण मेहो रे ॥ पुरुषां मंझण धन सही, णमा नहिं सं देहो रे ॥ दा० ॥ ॥ खूटधुंधन खातां सही, घरमें सबली खोटो रे ॥वज व्यापार न को चले,कुलर पेटने कोटो रे॥ दा० ॥ ए॥ढुंजाइश परदेशडे, धन खाटीश एक चित्तो रे॥ घरमां थें बिहुँ बेनडी, रहेजो रूडी रीतो रे ॥ दा० ॥१०॥ जयश्री सुणी प्रिय बोल डा, घरेणां गांठां उतारी रे ॥ पियु धागल मूकी कहे, ए काया माया ताहारी रे॥दा०॥११॥खा पी खरचो वली, मांफो वएज व्यापारो रे ॥ नाह कहे धन्य तुं सती, तुं मुज प्राण वाधारो रे ॥ दा० ॥१२॥ घरगुं गौतुं वेचता, लाज घटे दुवे खुवारी रे ॥ हुँ चालीश तिणे तुज वसु, घरनी मांम सारी रे ॥ दा० ॥१३॥ नारी मनावी नाहले, चालणरो कीयो संचो रे ॥ माथे नाग्यने चाहडी, न टले कर्मप्रपंचो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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