Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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१५ ] जनता के समक्ष प्रकट कर विक्रमादित्य जैसे कद्वार व सम्राट का मस्तक नम्रीभूत कर दिया एवं पतितपावन जनधर्म की अपूर्व प्रभावना की । कहना नहीं होगा कि ऐसी अवस्था में पुस्तक की जितनी ही अधिक आवश्यकता थी, उतना ही अधिक उसकी सम्पन्नता में साधनो का अभाव था। उन्हीं सारी कठिनाइयों को आपके सामने रम्बे बिना मुझसे नहीं रहा जायगा । क्योकि उन्हें प्रकट न करने देना भो एक प्रकार की अपूर्णता सिद्ध होती।
अन्य स्नोत्रों की भांति इस स्तोत्र का पूर्ण अथवा अपूर्ण इतिहास जैन शास्त्रों में कहीं है, यह खोजग जहाँ एक समस्या बनी हुई थी, वहां दूसरी ओर श्लोकों के ऋद्धिमत्र तथा यंत्रों को शुद्धनम रूप से पुस्तक में देना प्रसंभव बना हुमा या । क्योंकि घोर प्रध्यवसाय एवं उद्योग के बाद इस स्तोत्र की एक ही प्रति देहली के पंचायती जनमन्दिर मे उपलब्ध हुई पौर वह भी प्रशुद्ध । परन्तु प्राकृतभाषा के विद्वान श्रीमान पडित बालचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री देहली तथा श्रीमान पडित फूलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्री वाराणसी की प्रसीम कृपा के लिये स्या कहा जाय कि जिन्होंने अनवरत श्रम करके ऋद्धियों, मंत्रों और यंत्रों में उपयुक्त संशोधन किये।
___ यहाँ यह स्पष्ट करना अधिक प्रावश्यक है कि प्रस्तुत पुस्तक में साधन विधिसहित दो प्रकार के ऋद्धि और मंत्र दिये गये हैं। एक तो वे जो प्रत्येक दलोक के नीचे दिये गये हैं
और दूसरे वे जो कि पुस्तक के मध्य में (पृष्ठ ९७ से पृष्ठ १४४ तक) अलग से ही यत्राकृतियों सहित प्रकाशित हैं। वह सब देहली से प्राप्त मूल प्रति का ही संशाधित रूप है। यद्यपि रूप इसका अवश्य संशोधित है तथापि एक प्रावश्यक प्रभाव