Book Title: Kalyanmandir Stotra
Author(s): Kumudchandra Acharya, Kamalkumar Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 12
________________ अपनी बात पुस्तक लिखने के पूर्व लेखक को अपनी प्रोर से कुछ लिखना ही चाहिये । इस परम्परा के नाते मैं निम्न पंक्तियां अपने प्रिय पाठकों के सम्मुख नहीं रख रहा हूँ; न ही स्तोत्र की स्वयं सिद्ध सर्वश्रेष्ठता का दिग्दर्शन कराने की मेरी अभिलाया अथवा साहस है । यहाँ तो केवल अपनी उस प्रक्षमता को प्रकट करना है; जो संभवतः किन्हीं सक्षम एवं कुशल हाथों की ही वाट जोहना-जोहता निराश सा हो रहा था। आशा है. इसलिये ग्राप प्रस्तुत पुस्तक में रह जाने वाली त्रुटियों एवं अभाव की भोर लक्ष्य करने के पूर्व उन अनेक कठिनाइयों और बाधामों की ओर अपना विशाल दष्टिकोण अपनायेंगे जिसके कारण "भक्तामर स्तोत्र से भी श्रेष्ठतर यह 'कल्याणमन्दिर स्तोत्र' जो कि वस्तुत: कल्याण का ही मन्दिर है, अपने उस सर्वाङ्ग सम्पूर्ण स्वरूप में अभी तक जनता के सामने नहीं मा सका और यही कारण है कि अपने स्थाति एवं लोकप्रियता के क्षेत्र में वह 'गुदड़ी का लाल' ही बना रहा । प्राद्योपान्त इस मङ्गलमय स्तोत्र का रमपान करके पाठक स्वीकार करेंगे कि इसमें वह भावपूर्ण भक्ति है जो कि मानन्द का एक पविरल निर्भर वहा सकने की शक्ति रखती है। दैविक अतिशय एवं फलप्राप्ति ही मपेक्षा से ही प्रस्तुत स्तोत्र अन्य प्रसिद्ध प्रचलित जैनस्तोत्रों की तुलना में कितना अधिक चमत्कारपूर्ण है, इसको इतिहास की वह घटना ही स्पष्ट कर देती है कि जिसके द्वारा इस स्तोत्र के सम्माननीय रचयिता श्री कुमुदचन्द्राचार्य जी ने मोंकारेश्वर के शिवलिङ्ग से श्री १००८ श्री पार्वनाथ जी का सौम्य प्रतिबिम्ब प्रपार

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