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ग्रन्थों के लेखक एवं सम्पादक श्री देवेन्द्र मुनि जी शास्त्री से प्रार्थना की और मुनि श्री ने अत्यन्त परिश्रम के साथ नवीन शैली से यह ग्रन्थ तैयार किया।
श्री मुलतानमल जी रांका की धर्मपत्नी धर्मानुरागिणी प्यारकुवर बहिन ने उभरते हुए यौवन मे जब दीक्षा ग्रहण करना चाहा तब अपनी इच्छा से आपका द्वितीय पाणिग्रहण श्री राजमल जी भंसाली की सुपुरी डाई बाई के साथ करवाया और असार संसार को छोड़कर, पति के प्यार से मुख मोडकर, विदुषी महासती श्री किस्तुरकुवर जो के पास दीक्षा ग्रहण की। छः वर्ष तक उत्कृष्ट सयम-साधना कर डग (झालावाड) गांव में सथारा
लेखना कर स्वर्गस्थ हई। श्री रांका जी के वर्तमान मे एक पत्र हैं, जिनका नाम श्री माणिकचन्द जी हैं और चार पुत्रियाँ है। सक्षेप में कहा जाय तो श्री मुलतानमल जी रांका सिवाना गढ के स्थानकवासी समाज के गौरव है। प्रस्तुन प्रकाशन में १००१ रुपये प्रदान कर साहित्यिक सुरुचि एव उदारता का परिचय दिया है। श्रीमान् मुलतानमल जी हजारीमल जी रांका :
ये भी गढ़ सिवाना के निवासी थे, बड़े ही समझदार, विवेकशील व धर्मप्रेमी थे। अभी-अभी आपका अकस्मात् स्वर्गवास हो गया। आपका व्यवसाय मेसूर स्टेट मे बल्लारी ग्राम में था, आप एक कुशल व्यापारी थे, बल्लारी में जैन स्थानक के भव्य-भवन के निर्माण कराने मे आपका पूर्ण सहयोग रहा। अनेक बाधाओ के बावजूद भी आपने स्थानक का कार्य पूर्ण करके ही छोड़ा। कल्पसूत्र के निर्माण मे १००१ रुपये का सहयोग प्रदान कर शास्त्र प्रेम का परिचय दिया। बागरेचा परिवार :
सिवानागढ के रांका परिवार की तरह ही वागरेचा (जिनाणी) परिवार का भी धार्मिक, सामाजिक एवं राजनैतिक दृष्टि से बहत महत्त्व रहा है। सामाजिक दृष्टि से ही नही, धार्मिक दृष्टि से भी यह परिवार सदा अगुआ रहा है । सन्त भगवन्तो की ही नहीं, अपितु श्रद्धालु स्वधर्मी बन्धुओ को भी सेवा-शुश्रूषा करना इस परिवार को अत्यधिक प्रिय रहा है।
। स्वर्गीय सुश्रावक भभूत मल जी एक धर्म प्रेमी थावक थे, जो स्वभाव से भद्र और प्रकृति से विनीत थे। जिन्होने जीवन की सान्ध्य वेला मे सथारा कर समाधि पूर्वक आयु पूर्ण किया था। उनके चार सुपुत्र थे, श्री छोगालाल जी, चुनीलाल जी, मिश्रीमल जी और हस्तीमल जी, ये चारो भाई पूज्य पिता को तरह ही धर्म निष्ठ थे। आगे तीन भाई तो स्वर्गस्थ हो चुके हैं, केवल हस्तीमल जी साहब इस समय उपस्थित हैं। श्रीमान् हस्तीमल जी जेठमल जी :
___ आप प्रकृति से बड़े उदार, मिलनसार तथा धर्मनिष्ठ हैं। आपकी आगम स्वाध्याय के प्रति सहज निष्ठा है तथा स्तोक (थोकड़े) साहित्य का आपका गहरा अभ्यास है। आप वर्षों तक सिवाना गढ के स्थानकवासी संघ के मंत्री रहे हैं। आपकी तरह आपके सुपुत्र