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जिंदगी इम्तिहान लेती है
२७ ® मनुष्य के तमाम प्रश्न, तमाम उलझनें धर्म एवं अध्यात्म के माध्यम से
सुलझ सकती है... पर इसके लिए स्वच्छ पारदर्शी प्रज्ञा एवं निर्मल बुद्धि का होना आवश्यक है। ® श्रद्धा के साथ प्रज्ञा का पुट मिलता है, तब फिर आदमी दीन-हीन और
व्याकुल नहीं हो उठता है। ® दु:खों से डर कर या सुखों से ललचा कर की गई प्रार्थना वास्तव में प्रार्थना
नहीं होती... वह तो याचना पत्र है! • केवल दिखावे की श्रद्धा क्या काम की? श्रद्धा चाहिए भीतर की, अंत:करण
की!
® श्रद्धावान शुष्क नहीं होता... उसका जीवन रसमय होता है। वह सदा प्रसन्न
एवं प्रफुल्लित रहता है।
पत्र : ७
प्रिय मुमुक्षु,
धर्मलाभ, दो महीने व्यतीत हो गए, पत्र नहीं लिख सका। मई में यहाँ ज्ञान स्तर का आयोजन हुआ, उसमें व्यस्तता रही। काफी आनंद मिला, १० जून को हमने यहाँ भायखला में वर्षाकालीन स्थिरता हेतु प्रवेश कर दिया है। अब कार्तिक पूर्णिमा तक यहाँ स्थिरता होगी।
तेरे दो पत्र मिले। धर्म और अध्यात्म के विषय में तेरी अभिरुचि जागृत हुई- इससे मेरा मन प्रसन्न हुआ । 'सायन्स' और 'टेक्नोलोजी' के इस युग में धर्म-चिन्तन और अध्यात्म-परिशीलन कितने लोग करते हैं? मुझे पूर्ण विश्वास है कि मनुष्य के सारे प्रश्न, सब समस्याएँ धर्म और अध्यात्म के माध्यम से ही सुलझ सकती हैं। भौतिक और मानसिक, पारिवारिक और सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक... सभी प्रश्नों का समाधान, वास्तविक समाधान धर्म चिंतन और अध्यात्म के परिशीलन से प्राप्त हो सकता है। परन्तु चाहिए सूक्ष्म... निर्मल प्रज्ञा और अविचल श्रद्धा । प्रज्ञा और श्रद्धा के सहारे जीवन-यापन करना चाहिए।
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