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जिंदगी इम्तिहान लेती है
१३३ होंगे। आज यहाँ इसमें से कुछ नहीं है। काल के भीषण प्रवाह में सब कुछ बह गया है... खड़ा है, मात्र महल का जर्जरित खंडहर | हम लोग इस खंडहर में से ही निकले। आगे बढ़े... दूर दो भव्य जिनालय दृष्टिपथ में आए। हालाँकि मुसलमानों ने भी यहाँ एक कब्र बना रखी है! ब्राह्मणों ने १-२ मठ बना रखे हैं, परंतु इनमें कोई आकर्षण नहीं है। जिनालयों की भव्यता यात्रियों को आकर्षित किये बिना नहीं रहती। एक है, दिगम्बर जैन मंदिर और दूसरा है, श्वेताम्बर मंदिर | श्वेताम्बर मंदिर बावन जिनालयवाला विराटकाय मंदिर है। सोलहवें तीर्थंकर परमात्मा शांतिनाथ की नयनरम्य प्रतिमा मूल गर्भगृह में बिराजमान है।
मंदिर जितना भव्य है, उतना ही स्वच्छ और दर्शनीय है।
परमात्मा की स्तुति-भक्ति कर, हम लोग इडर के इस पहाड़ के दूसरे शिखर की ओर चल पड़े | उस शिखर का नाम है, रणमल चौकी । हमारे साथ मेरे पूर्वपरिचित मुनिराज, जो कि उस पहाड़ पर जो उपाश्रय है, उसमें रहे हुए थे, हमारे साथ हो गये | बड़े सरल और निरभिमानी साधुपुरुष हैं। उन्होंने कहा : 'यहाँ रास्ते में एक गुफा है, वहाँ एक बयासी साल की बुढ़िया चालीस साल से अकेली रहती है। यदि हम वहाँ चलें तो वह बहुत प्रसन्न होगी।
हम लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। अकेली महिला चालीस साल से गुफा में रहती है! हम लोग गये उस गुफा में | उस बुढ़िया ने हमारा मधुर शब्दों से स्वागत किया, हर्ष व्यक्त किया। साधु-संतों के प्रति उसकी अपार श्रद्धा देखने को मिली। इससे भी ज़्यादा उस वृद्धा में मैंने अपूर्व आत्मबल, प्रसन्नता और सदाबहार मिजाज पाया।
वहाँ से हम चल पड़े रणमल चौकी की तरफ। कुछ ऊँचाई पर हमने एक जीर्ण-शीर्ण मंदिर देखा | हम लोग पहुँच गये उस मंदिर के पास | यही रणमल चौकी थी। यहाँ से पूरा इडर शहर दिखाई देता है। इडर का कोई भी मनुष्य अपने घर के छप्पर पर से इस जगह को देख सकता है। रणमल चौकी का यह मंदिर जैन मंदिर है। भगवान नेमनाथ की यहाँ बड़ी मूर्ति थी, आज नहीं है। सुना है कि मुसलमानों के आक्रमण के समय मूर्ति तोड़ दी गई थी और मंदिर को भी तोड़ा गया था। फिर भी मंदिर के गर्भगृह के द्वार पर परमात्मा जिनेश्वरदेव की मंगलमूर्ति आज भी है। कुछ बहुत सुंदर शिल्पयुक्त देव-देवियों की भी मूर्तियाँ यहाँ पर है। ऐसा प्रामाणिक इतिहास प्राप्त होता है कि यह मंदिर बारहवीं शताब्दी में बना था। जब वह बना होगा, कितनी चहलपहल
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