Book Title: Jindgi Imtihan Leti Hai
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 188
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है १७५ ® दुनियाभर की उलझने पैदा होती है, व्यवहारदशा के दृढ़ एवं हठीले आग्रहों से। यह सत्य समझ लेना चाहिए... स्वीकार लेना चाहिए। ® व्यवहार के असंख्य विधिनिषेधों में उलझ कर मनुष्य अपने 'आत्मतत्त्व' को विस्मृति के बीहड़ वन में भूल गया है। ® स्पष्टवादिता यदि कटुता से मुक्त रह सकती है... तब तो वह स्वीकार्य हो सकती है... यदि कटुता से ही स्पष्टवादिता उभरती है तो वह नुकसानकारक होती है। ® सत्य भी प्रिय एवं मधुर होना जरूरी है, तो ही वह स्वीकार्य बनता है। ® सत्य की अभिव्यक्ति जब आवेश व आवेग का शिकार बनती है, फिर उसका सौन्दर्य सूख जाता है। पत्र : ४१५ प्रिय गुमुक्षु! धर्मलाभ, तेरे दोनों पत्र मिल गये थे, प्रत्युत्तर लिखने में विलंब हो गया है, फिर भी लिख पाया हूँ... इस बात की खुशी है! चातुर्मास के अंतिम दिनों में अत्यधिक व्यस्तता रहती है। डीसा से विहार कर दिया है और इस प्रदेश के एक प्राचीन तीर्थ भीलड़ीयाजी में आये हैं। कुछ दिन यहाँ स्थिरता करेंगे। तेरे अनेक प्रश्न हैं और उन प्रश्नों का समाधान तू चाहता है, अवश्य तेरे प्रश्नों के समाधान करने का प्रयत्न करूँगा, तेरे मन को, अन्तःकरण की शान्ति, समता और प्रसन्नता मिले, यही मेरी आन्तरअभिलाषा है। यह कोई उपकारवृत्ति से नहीं लिख रहा हूँ, आंतरप्रीति से लिख रहा हूँ। तेरी प्रसन्नता मेरी प्रसन्नता बन जाती है... इसलिये लिख रहा हूँ। सारी उलझनें व्यवहारदशा के दृढ़ आग्रहों से पैदा होती है, यह बात तुझे अच्छी तरह समझ लेनी होगी। लोक-व्यवहार... कुटुम्ब-व्यवहार, समाजव्यवहार... और धर्मक्षेत्र में भी व्यवहार! व्यवहार के असंख्य नियम और बँधन! इन नियमों के और बँधनों के तीव्र तनाव अनुभव करता हुआ मनुष्य अपने 'आत्मतत्व' को भूल ही गया है! आत्मतत्व विस्मृति की गहरी खाई में डूब गया है। For Private And Personal Use Only

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