Book Title: Jindgi Imtihan Leti Hai
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 196
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है १८३ तू कब बाह्य दर्शन की बुरी आदत से मुक्त होगा? बाहर की दुनिया का ही दर्शन-चिंतन कर तू परेशान हो रहा है। तू हमेशा दूसरों को ही देख रहा है... दूसरों के गुण-दोष देख रहा है... और अशान्त हो रहा है। जो लोग तेरे गुणदोष नहीं देखते हैं... उनके भी गुण-दोष तू देखता है और निन्दा करता रहता है। जीवन की निष्फलता का यह एक प्रमुख कारण है। जिनके साथ तेरा कोई विशेष प्रयोजन नहीं है, जो लोग तेरे प्रति दुर्भाव नहीं रखते हैं... उनके गुण-दोष देखकर तू व्यर्थ ही उद्विग्न बनता है। यह फालतू परचिन्तन क्यों करना चाहिए? इस आदत की वजह से तू ऐसे सुरम्य, प्रशान्त और पवित्र स्थानों में जाने पर भी शान्ति नहीं पाता है। तू सच-सच बता, क्या पावापुरी जैसे पवित्र स्थान में भी तूने शान्ति पायी? वहाँ से तू प्रसन्नता के सदैव सुरभित पुष्प ले आया? वहाँ से आने के बाद तेरा मन, तेरे नयन आनन्दित हो पाये? ___अब तू कहाँ जायेगा सुख-शान्ति पाने के लिये? बाह्य दुनिया में तु जहाँ भी जायेगा, तेरी परदर्शन की आदत तुझे परेशान करती रहेगी। तू कहीं पर भी स्वस्थता-स्थिरता नहीं पा सकेगा। तू अपने गत जीवन पर एक दृष्टिपात कर, जहाँ-जहाँ तू निष्फल गया, जहाँ-जहाँ तू परेशान हुआ... तू वास्तविक कारणों की खोज कर | तू अपनी गलती खोज निकालना। ___ जब तक तू दूसरों की गलतियाँ देखता रहेगा, तेरी परेशानी मिटने वाली नहीं है। चूंकि अपना मन दूसरों की गलतियाँ देखने का आदी है। दूसरों की गलतियाँ मिटाने की अपनी क्षमता नहीं है। एक व्यक्ति की गलती मिटाने पर दूसरे व्यक्ति की गलती दिखाई देगी! दूसरे की गलती मिटाने पर तीसरे व्यक्ति की गलती दिखायी देगी! कभी अन्त नहीं आयेगा। तू दूसरों के सामने देखना बंद कर सकेगा? तू अपने आपको देख, तू अपने कार्यों में लग जा, तेरे कार्यक्षेत्र में विकास करता जा | सफलता पाने का यही वास्तविक मार्ग है। मैंने एक साधु को जीवनपर्यंत परदर्शन में उलझा हुआ देखा। जीवन में वह साधु कोई विशिष्ट सफलता पा नहीं सका। जीवन में आन्तरशान्ति और आन्तरतृप्ति भी नहीं पा सका। दूसरे एक साधु पुरुष को मैं वर्षों से देख रहा हूँ... वे निरन्तर अपने धार्मिक क्षेत्र में विकास करते आगे बढ़ रहे हैं। जब देखो तब उनके मुख पर प्रसन्नता ही प्रसन्नता! जब उनसे बातें करो, अमृत ही पिया करो! किसी की निंदा नहीं, कोई परचिंता नहीं... किसी की फरियाद नहीं! मैंने उनको तृप्त देखा! हालांकि उनके पास रहने वाले सभी For Private And Personal Use Only

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