Book Title: Jindgi Imtihan Leti Hai
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 223
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है २१० साहब, मुझे सब प्रकार के सुख मिले हैं... कोई दु:ख नहीं है... परन्तु मैं इसलिए अशान्त रहता हूँ कि मेरा एक लड़का मेरी एक बात भी मानता नहीं है। उसके प्रति मुझे राग है... परन्तु उसका मेरे प्रति कोई लगाव नहीं है। न वह मेरे साथ प्रेम से बात करता है, न वह ऑफिस में आकर मेरे कार्य में सहयोग देता है। मेरे मन में बस, उस लड़के की हरकतें ही आती रहती हैं। अच्छा फ्लेट है, कार है, पत्नी है... सब कुछ है, परन्तु मन में शान्ति नहीं है।' इस पुरुष के पास, संसार में जो सुख मनुष्य के पास होने चाहिए... सब हैं। एक सुख नहीं है... पुत्र-प्रेम का! और एक सुख के अभाव में वह इतना बेचैन है कि शायद वह अपना 'बेलेन्स ऑफ माइन्ड' गँवा देगा। वह एक सुख का त्याग नहीं कर पा रहा है। मैंने कहा उसको : भैया, पुत्र-सुख को बिखेर दो!' यह मेरा पुत्र है... मैंने उसको खूब प्यार दिया है... उसका मेरे प्रति प्रेम होना चाहिए...।' इस विचार को 'वेस्ट पेपर बॉस्केट' में डाल दो। उसने कहा : 'महाराज साहब, हमें तो संसार में जीना है... यदि लड़का सीधा नहीं चले, आवारा बन जाए... तो मेरी इज्जत...।' इज्जत का सुख! जो इज्जत दुनिया से संबंधित होती है... उस इज्जत का सुख बनाये रखने की इच्छा ही तो दुःख है। दुनिया क्या कहेगी? दुनिया की निगाहों में हमें अच्छे बनकर रहना चाहिए...| यह विचार कितना गलत है। दुनिया ने कभी अच्छे पुरुषों की प्रशंसा 'ये अच्छे हैं', ऐसा मानकर नहीं की है, दुनिया में उन पुरुषों की प्रशंसा होती है कि जिनका 'यस नामकर्म' नाम का पुण्य कर्म उदय में होता है। मैंने उस महानुभाव को धर्म का सिद्धान्त समझाया । 'इज्जत मिले या नहीं मिले, चिन्ता उसकी मत करो, चिन्ता करो तुम्हारे मन की, तुम्हारी आत्मा की।' इज्जत के सुख की कल्पना मनुष्य के मन पर हावी हो जाती है तब इज्जत मिलने पर भी वो सुखी नहीं होता है। सदैव इज्जत को बनाये रखने की फिक्र सताया करती है। जहाँ फिक्र वहाँ दुःख | वहाँ अशान्ति! जीवन पर्यंत, इस प्रकार कई मनुष्य इज्जत की फिक्र में अशान्त बने रहते हैं । इज्जत की कल्पना का सुख बिखेर देना चाहिए... त्याग कर देना चाहिए। __ मुश्किल तो है यह काम । इज्जत और प्रतिष्ठा माध्यम बने हुए हैं, दूसरे सुखों को पाने में! फिर भी यह काम करना आवश्यक है। सुखों की कामनाओं का विसर्जन करना अनिवार्य है। हालांकि, चारों ओर सुख पाने की भगदड़ For Private And Personal Use Only

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