Book Title: Jindgi Imtihan Leti Hai
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 222
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है २०९ @ एक आदमी ही नहीं, वरन् सारी सृष्टि, समग्र जीवसृष्टि सुख की आशा में, __ सुख की खोज में जी रही है। ® सुख के बारे में हर एक आदमी की अपनी-अपनी धारणाएँ होती हैं, अपनी अपनी कल्पनाएँ होती हैं। ® सुख को पाने के लिए सब लालायित हैं, पर अपने सुखों को कोई बाँटने या बिखेरने की बात नहीं सोचता है! ® जब तक सुखों का आकर्षण कम नहीं होगा तब तक सुखों का त्याग सहज-स्वाभाविक नहीं होगा। ® अल्प र विधाओं में जीने की कला सीख लेनी चाहिए। पत्र : ५० प्रिय मुमुक्षु! धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला, सारी परिस्थितियों से परिचित हुआ। तेरे प्रति मेरी संवेदनायें हैं...। तेरी परेशानियाँ दूर हों... तेरे शोक-संताप उपशांत हों, परमात्मा से यही प्रार्थना करता हूँ। महानुभाव, आज तुझे कुछ ऐसी बातें लिखना चाहता हूँ, जो कुछ गम्भीर हैं, कुछ अटपटी भी! तेरा पत्र आने के पश्चात् मैंने शान्त चित्त से सोचा । मुझे लगता है कि मात्र तू ही नहीं, करीबन सारा विश्व कुछ न कुछ सुखों की अपेक्षाएँ लेकर जीता है। 'यह सुख तो होना चाहिए, इतना सुख तो होना चाहिए... इस सुख के बिना तो कैसे चल सकता है?' ऐसी कुछ धारणाएँ मनुष्य बाँधकर चलता है। और इसी वजह से मनुष्य दुःखी है, संतप्त और अशान्त है। आज दिन तक इस प्रकार जीवन जीता रहा है न? इतने वर्षों तक, इस प्रकार जीवन जीने से तू संतुष्ट नहीं है न? तू तृप्त नहीं है न? अब एक नया प्रयोग कर ले! कुछ बाह्य सुखों का त्याग कर दे और कुछ मानसिक सुखों को बिखेर दे! हाँ, मन की कल्पनाओं के सुखों का त्याग कर दे। एक भाई मेरे पास आये थे, थोड़े दिन पहले। उन्होंने कहा : 'महाराज For Private And Personal Use Only

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