Book Title: Jindgi Imtihan Leti Hai
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 224
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है २११ मची हुई है... विराट विश्व में जहाँ देखो वहाँ सुख पाने की और दुःखों से छुटकारा पाने की ही चहल-पहल दिखती है। तेरे आसपास... तेरे परिवार में भी तू सुख- विसर्जन की बात करेगा तो लोग तेरी मजाक उड़ायेंगे...! नयी बात है न! प्रिय मुमुक्षु, जीवन के कई प्रश्नों से, कई समस्याओं से तू मुक्ति पा लेगा.... यदि दृढ़ता के साथ तू सुखों का विसर्जन करेगा तो ! पहले तो मन को सुखवासना से मुक्त करना होगा । सुखों की वासना से मुक्त करना है मन को, तो सुखों की वैषयिक सुखों की निःसारता का पुनः पुनः चिन्तन करना । सभी वैषयिक-भौतिक सुख अनित्य-विनाशी है, भयाक्रान्त है और पराधीन है .... इन तीन पहलुओं के माध्यम से निःसारता की प्रतीति करनी होगी। सुखों के प्रति विरक्ति बढ़ने पर, तू सहजभाव से सुखों का त्याग कर सकेगा। तेरे मन में सुखों का आकर्षण नहीं रहेगा। इससे तू अपूर्व मनःशान्ति पायेगा। अद्भुत चित्तप्रसन्नता की अनुभूति करेगा । बाह्य सुखों का त्याग तुझे आन्तर सुखों की अद्वितीय भेंट देगा। सीताजी के जीवन की एक घटना के प्रति तेरा चिन्तन हुआ है ? जब सीताजी पुंडरीक नगर में, राजा वज्रजंघ के आश्रय में रही थी... और जहाँ उन्होंने लव-कुश को जन्म दिया था ... वहाँ ही लव-कुश बड़े हुए थे। लव-कुश रूपवान और गुणवान लड़के थे... । ऐसे पुत्रों के प्रति स्नेह होना माता के लिए स्वाभाविक होता है। परन्तु सीताजी ने पुत्रों के साथ हार्दिक स्नेह का संबंध नहीं बाँधा था। संसार के सभी सुखों के विसर्जन की प्रक्रिया पुंडरीकनगर में ही शुरू हुई थी। वह प्रक्रिया संपूर्ण हुई अग्निपरीक्षा के बाद तुरंत ! संसार के सभी सुखों का त्याग कर सीताजी महात्याग के पथ पर चल दी थी। पुत्रों का लालन-पालन करते थे, उनको शिक्षा दिलाते थे... उनकी शादी भी की थी... परन्तु जो कुछ किया, मात्र कर्तव्य के नाते ! मातृत्व का वात्सल्य होते हुए भी ममत्व के बंधन से बंधे नहीं । विरक्तभाव को बढ़ाने का कार्य वे करती ही रही । अति अल्प सुख-साधनों से जीवन-यापन करने की पद्धति को समझ लेना। तुझे विपुल सुख सामग्री मिल सकती है, फिर भी तू स्वीकार नहीं करना । बहुत थोड़ी आवश्यकता होनी चाहिए । परिवार को भी इसी प्रकार जीवन जीने की कला बता देना! धीरे-धीरे सभी अनुकूल बनते जायेंगे। यदि अनुकूल नहीं बनें तो उनका भी त्याग करना आवश्यक बन जायेगा । For Private And Personal Use Only

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