Book Title: Jindgi Imtihan Leti Hai
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 201
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है १८८ अलावा घर में तुझे क्या काम है ! तू मंदिर में जा सकता है, उपाश्रय में ज्ञानीपुरुषों का सत्संग कर सकता है, ऑफिस में तेरे भाइयों को सहायक बन सकता है। दुकान पर तेरे पिताजी को उपयोगी बन सकता है... अथवा दुकान में बैठकर अच्छी किताबें पढ़ सकता है । क्यों घर की बातें सुनता रहता है ? भाई-भाभी की बातें उनकी पर्सनल बातें हैं, तू क्यों बीच में कूद पड़ता है ? बड़े भाई और पिताजी की बात उनकी अपनी बातें होती हैं, तू क्यों बीच में भाषण देने लगता है? ऐसा करने से तेरा अपमान ही होगा ! उन लोगों की निगाहों में तू Overwise बन गया है। मोक्षमार्ग की आराधना के मार्ग से तू कितना दूर चल रहा है, यह बात मैं तुझे कैसे समझाऊँ? मात्र मंदिर में जाकर पूजा-पाठ कर लिया और धर्मस्थान में जाकर साधुपुरुष का प्रवचन सुन लिया, अथवा कभीकभार सामायिकप्रतिक्रमण कर लिया, इस से मोक्षमार्ग की आराधना पूरी नहीं हो जाती है। यह सब करते समय तेरा मन कहाँ भटकता है ? तेरी चित्तवृत्तियाँ कितनी चंचल बनी रहती हैं ? चित्त की चंचलता मिटाये बिना, मन का आर्तध्यान मिटाये बिना क्या मनुष्य धर्म को पा सकता है ? यदि तेरी आन्तरअभिलाषा आत्मविशुद्धि के मार्ग पर चलने की है, यदि तेरी मनःकामना इस अल्पकालीन जीवन में कोई शाश्वत् तत्त्व को पा लेने की है, यदि तेरी अन्तःचेतना योग और अध्यात्म की गहराई में जाने की है तो तुझे तत्काल पारिवारिक झंझटों से मुक्त हो जाना चाहिए । परिवार के प्रति तेरे कर्तव्यों का पालन करते हुए मात्र 'मेहमान' बनकर घर में रहना चाहिए । घरवालों की बातें सुनना नहीं, घरवालों के गुण-दोष देखना नहीं! एक दिन जब परिवार का त्याग कर निकल जाना है, सारे स्नेह के बंधन तोड़ने हैं, तो फिर घरेलू बातों से इतना लगाव क्यों ? मान ले कि किसी प्रतिबंधक कर्म के उदय से गृहवास का त्याग न हो सका, तो भी आध्यात्मिक विकास के लिये निरर्थक घरेलू बातों का त्याग करना अनिवार्य होगा । आत्मशांति और चित्तप्रसन्नता को अखंड बनाये रखने के लिये तुझे अन्तर्मुख बनना होगा। संसार तो अनन्त बुराइयों से भरा हुआ है... तू कितनी बुराइयाँ देखेगा? और दूसरों की बुराइयाँ देखता रहेगा तो तेरी अपनी बुराइयों को कब देखेगा? कब दूर करेगा ? यह आदत बहुत ही गन्दी है! इसलिये कहता हूँ कि तू बहिर्मुख निरीक्षण छोड़ दे और अन्तर्मुख दर्शन करना शुरू कर दे । अन्तर्मुख चिन्तन और अन्तर्मुख दर्शन साधुजीवन For Private And Personal Use Only

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