Book Title: Jindgi Imtihan Leti Hai
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 200
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है १८७ पर है। वे तुझे पढ़ा रहे हैं और तेरी सभी आवश्यकताओं को पूर्ण कर रहे हैं। वे तुझे सब कुछ देते हैं, तू उनको क्या देता है? __तू यह चाहता है कि तेरे कहे अनुसार तेरे भाई-भाभी जीवन जीयें! तेरी इच्छा के अनुसार सब कुछ घर में होता रहे! तेरी पसंदगी-नापसंदगी का सभी घर वाले खयाल करें! तेरा भाषण सभी सुनते रहें! घर वाले सभी लोग तेरी प्रशंसा करें! तेरे दो-चार पत्रों से मैं यही निष्कर्ष निकाल पाया हूँ कि तू विशेष रूप से अहं केन्द्रित होता जा रहा है। ___घोर निष्फलता की राह पर तू चल रहा है, क्या तू समझेगा? जो जिम्मेदारियाँ तेरी नहीं हैं, उन जिम्मेदारियों के विषय में तू सोचता रहता है और जो लोग तेरी बातें सुनना नहीं चाहते उनको तू तेरी बातें सुनाता रहता है। यह सफल जीवन जीने का तरीका नहीं है। तू दिन-प्रतिदिन अपने ही घर में अप्रिय बनता जा रहा है। हालांकि तू घर में सबसे छोटा है इसलिये और तेरी माताजी को दुःख न हो इसलिये सभी लोग तेरी हरकतें सहन करते जा रहे हैं। परंतु तू सोचना, पहले तेरे दोनों बड़े भाई तेरे सामने कितने प्रेम से देखते थे? अब? पहले तेरी दोनों भाभी तेरे साथ कितना वात्सल्यपूर्ण व्यवहार करती थी? अब? एक जगह तेरे बड़े भाई मुझे अचानक मिल गये थे... मैंने तेरे विषय में कुछ पूछा... तो उनके मुँह से निकल गया कि वह अपने आप को बड़ा बुद्धिमान समझता है... बड़ा धर्मात्मा मानता है... हम लोगों को पापी मानता है... ठीक है, उसकी पढ़ाई पूर्ण हो जाय... बाद में संसार की वास्तविकता का परिचय होगा!' वे ज्यादा नहीं बोले परंतु मैंने देखा कि वे तुम्हारे प्रति अत्यन्त नाराज हैं। ___ महानुभाव, तू एक सत्य का स्वीकार कर ले कि मनुष्य को दूसरों के जीवन में अनधिकृत हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। दूसरों के गुण-दोषों का विचार नहीं करना चाहिए। स्वयं के बाह्य-आंतरिक विकास के विषय में चिंतन-मनन करना चाहिए। तू जितना अपने माता-पिता के विषय में और भाई-भाभी के विषय में सोचता है, उतना अपने स्वयं के आत्मविकास के विषय में सोचता है क्या? क्या तू पूर्णता के शिखर पर पहुँच गया है? तू क्या पूर्ण ज्ञानी और वीतराग बन गया है? तू लिखता है कि 'जिन के साथ दिन-रात रहते हैं उनके आचार-विचार देखता हूँ, सुनता हूँ तो उनके विचार आ ही जाते हैं।' मेरा कहना यह है कि तू अब बालक नहीं है, युवक है, तू क्यों घर में बैठा रहता है? भोजन के For Private And Personal Use Only

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