Book Title: Jindgi Imtihan Leti Hai
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 209
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है १९६ भावना से नहीं सोचना कि 'वह मेरी उपेक्षा करता है करने दो, मेरे भी दिन आयेंगे... तब मैं उसकी घोर उपेक्षा करूँगा ।।' ऐसे विचार करने से तेरा मन अशान्त बनेगा, उद्विग्न रहेगा, संतप्त रहेगा। ऐसा क्यों करना चाहिए ? कभी-कभी तो ऐसा देखा जाता है कि कोई अपनी उपेक्षा नहीं करता हो, फिर भी ऐसा लगता है कि 'वह मेरी उपेक्षा कर रहा है ! वह मेरे प्रति दुर्लक्ष कर रहा है।' यह है मानसिक रोग ! मानसिक विकृत विचारों के कुचक्र में फँसे जीवों की दुर्दशा होती है । वे शारीरिक रोगों को भी आमंत्रण देते हैं! समझाने पर भी नहीं समझने वालों को नियति का ही दोष देखना पड़ेगा ! दूसरी बात : यदि तू दूसरों की अपेक्षाओं के प्रति दुर्लक्ष करता है तो दूसरों से तू कैसे अपेक्षापूर्ति की आशा रख सकता है? आदर्श तो यह होना चाहिए कि हम जिन लोगों की अपेक्षापूर्ति करते हों वे लोग अपनी एक भी अपेक्षा पूर्ण न करते हों तो भी उनके प्रति दुर्भावना नहीं करनी चाहिए ! मजा ऐसे आदर्शों को जीने में है । क्या दूसरों से अपेक्षा रखे बिना आनन्दपूर्ण जीवन नहीं जी सकते? जीवनपद्धति में परिवर्तन नहीं कर सकते ? परसापेक्ष जीवन दुःखी जीवन होता है। परसापेक्षता दुःखदायिनी होती है। मेरी राय यदि माने तो धीरे-धीरे परसापेक्षता के विषवर्तुल में से बाहर निकल जा ! मन को बदलने की ही बात है! मन बदला कि दुनिया बदल गई समझना ! यदि मन नहीं बदला तो तू कहीं पर भी जायेगा तुझे शांति, प्रसन्नता नहीं मिलेगी। दुनिया में कौन ऐसा फालतू बैठा है कि जो तेरी अपेक्षाओं को पूर्ण करता रहेगा? कौन तेरी प्रशंसा करता रहेगा? कौन तेरी महत्ता को गाता रहेगा? फिर तू कहाँ जायेगा ? दुनिया को कोसता रहेगा! जीव सृष्टि के प्रति घृणा करता रहेगा और मानसिक अस्थिरता का शिकार बन जायेगा । यदि तू अपनी उपेक्षा नहीं चाहता है तो तेरे व्यक्तित्व को गुणों से सुवासित बनाने का प्रयत्न कर। तू अपनी उपयोगिता ऐसी सिद्ध कर दे कि तेरे बिना दूसरों का कार्य स्थगित हो जाय! तेरी अनुपस्थिति में दूसरों को अभाव... अभाव लगे! तेरे आसपास के लोगों की अपेक्षाओं को तू पूर्ण करने का प्रयत्न करता रहे... वे लोग तेरी उपेक्षा कर ही नहीं सकेंगे ! तेरी शिकायत स्वतः दूर हो जायेगी! 'सभी लोग मेरी उपेक्षा कर रहे हैं,' इस विचार ने तेरे मन को क्षुब्ध कर दिया है। तेरी मुखाकृति को उद्वेग से पोत दिया है। तेरी वाणी में कटुता और For Private And Personal Use Only

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