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जिंदगी इम्तिहान लेती है
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भक्ति... आध्यात्मिक वाचन - परिशीलन... जीवनस्पर्शी वार्तालाप... जाप और ध्यान... मजा आ गया। कुछ लिखने का काम भी किया । परमात्मा अजितनाथ की शीतल छाया में अपूर्व आनंद की अनुभूति हुई ।
क्षेत्र के भी अपने प्रभाव होते हैं, इस बात की प्रतीति ऐसे स्थानों में होती है। पवित्र क्षेत्र में रहने से विचारों में भी पवित्रता बनी रहती है, यह बात अविश्वसनीय नहीं है। हालाँकि मनुष्य की दृष्टि पर सारी बात निर्भर होती है, फिर भी तीर्थक्षेत्र का प्रभाव तो मानना ही पड़ेगा ।
अन्तर्यात्रा के लक्ष्य से तीर्थयात्रा हो, तो आत्मानंद का अनुभव हो सकता है। अन्तर्यात्रा स्थगित नहीं होनी चाहिए। तेरी अन्तर्यात्रा चल रही होगी? कई दिनों से तेरा पत्र नहीं है - क्यों ? संसार की कोई उलझन पैदा हो गई है क्या ? शरीर ने कोई दुश्मनी नहीं की है न? कुछ भी हो, कोई भी बाह्य परिस्थिति अपने मन पर हावी नहीं हो जानी चाहिए। ज्ञाता बने रहो! द्रष्टा बने रहो! राग-द्वेष से बचने का भरसक पर्यत्न जारी रखो। धीरता से प्रयत्न करना होगा। सफलता प्राप्त करने में समय लगेगा। निराश नहीं बनना ।
सत्त्वशील बनकर जीवन जीना होगा ।
अब मेरा राजस्थान जाना संभव नहीं लगता है । चातुर्मास गुजरात में होने की संभावना लगती है । परिवार को 'धर्मलाभ' सूचित करना ।
वडनगर (गुजरात)
२८-२-७९
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प्रियदर्शन