Book Title: Jindgi Imtihan Leti Hai
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 184
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिंदगी इम्तिहान लेती है १७१ स्थति-परिस्थिति मिले... जब भी मनचाहे संयोग मिले... ___ जो कुछ करना है, कर लेना चाहिए! ® आत्मकल्याण के इरादे को कल पर रख देना बुद्धिमत्ता नहीं है...! ® संसार की अल्पकालीन छिछली समस्याओं में स्वयं को उलझा कर आत्मा ___ को भुला देना सबसे बड़ी भूल होगी। ® जीवन साधु का हो या गृहस्थ का, जीने का दृष्टिकोण तो चाहिए ही। यदि तात्त्विक जीवनदृष्टि का अभाव है, तो साधुजीवन भी कलुषित हो उठेगा। ® संसार तो दावानल है... उसे बुझाना मुमकिन नहीं है... अपने आपको बचा लेना अपने हाथ की बात है! पत्र : ४० प्रिय मुमुक्षु, धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला, आनन्द हुआ। तू इस चातुर्मास में यहाँ नहीं आ सका और नहीं आ सकेगा, इस बात का तेरे हृदय में दुःख होना स्वाभाविक है। संयोग, परिस्थिति, मनुष्य की इच्छाओं की सफलता-निष्फलता का आधार है। इसलिए जब सानुकूल संयोग-परिस्थिति हों तब अपनी सम्यक् इच्छाओं को सफल बनाने का पुरुषार्थ कर लेना चाहिए। सानुकूल परिस्थिति में धर्मपुरुषार्थ कर लेने का ज्ञानीपुरुष उपदेश देते हैं। जब तक अपना शरीर स्वस्थ एवं नीरोगी है, जब तक अपनी पाँचों इन्द्रियाँ कार्यक्षम हैं, जब तक अपना मन स्थिर और स्वस्थ है, तब तक धर्मपुरुषार्थ का अवसर है। आर्थिक, पारिवारिक एवं सामाजिक परिस्थितियाँ जब तक सानुकूल हैं, तब तक आत्मकल्याण का पुरुषार्थ कर लेना है। जीवन का भी तो कोई भरोसा नहीं है न। ___ मनुष्य का जीवन और उस जीवन के इर्द-गिर्द सब कुछ अस्थिर, चंचल और विनाशी है। इन सब अस्थिर... चंचल और विनाशी चीजों के बीच स्थिर और अविनाशी है एकमात्र आत्मा! उस आत्मा की सुरक्षा कर लेना आत्मा को पापों से बचा लेना... आत्मा में सुसंस्कारों के बीज बो देना... यही अपना लक्ष बन जाना चाहिए। For Private And Personal Use Only

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