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जिंदगी इम्तिहान लेती है
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तू लिखता है कि 'उसके प्रति अब मैत्रीभाव जागृत नहीं होता है... कभीकभी मन में उसके प्रति घृणा हो जाती है...।' मनुष्य स्वभाव में यह सब होना स्वाभाविक है। अपने प्रति तिरस्कार करने वालों के प्रति, अपना तेजोवध करने वालों के प्रति, अपनी कटु आलोचना करने वालों के प्रति मैत्री का, प्रेम का भाव टिकना अति मुश्किल है। उनके प्रति घोर घृणा होना भी अस्वाभाविक नहीं। उनके साथ जीवन व्यतीत करना भी यातनापूर्ण लगता है। तेरे प्रति वात्सल्य और स्नेह होने से, तुझे इस प्रकार की यातनाओं से मुक्त करने की प्रबल इच्छा हो जाती है । परन्तु जब मैंने थोड़े दिन पूर्व सोचा तो मेरे मन में विचार आया कि 'क्या मैं उसको अपने पास बुला लूँ तो उसकी यातनाओं का अन्त आ जाएगा? मानसिक वेदनाओं से मैं उसको मुक्त कर सकूँगा? उसके उजड़ते जीवन को हराभरा बना सकूँगा? यदि हाँ, तो यहाँ क्या कभी भी उसके मन में विकल्प पैदा नहीं होंगे ? यहाँ कभी भी मानसिक व्यथा पैदा नहीं होगी? यदि होगी तो फिर वह कहाँ जाएगा?' ऐसे तो अनेक विचार आए ! खैर, तू यदि मेरे पास आ जाये तो मैं विशेष रूप से सहयोगी बन सकूँगा और तेरी मानसिक दुनिया को बदल भी दूँगा.. परन्तु अभी क्या यह संभव है? ठीक है, थोड़े दिनों के लिए तू आ सकता है, फिर भी वहाँ जाना पड़ेगा न? न चाहते हुए भी जाना पड़ेगा न ? मनुष्य के जीवन में ऐसा होता ही रहता है ।
तू जानता है कि वह अभी सुधरने वाला नहीं है। उसका स्वभाव भी सुधरने वाला नहीं है। तेरे प्रति उसकी जो दोषदृष्टि बनी हुई है, वह मिटने वाली नहीं है। उसकी बुरी आदतें सुधरने वाली नहीं हैं... ऐसी परिस्थिति में तुझे जीवन जीना है! तू जीवन जी रहा है ! लाख लाख धन्यवाद है तुझे ! तेरा कहना यथार्थ है कि 'रहने को बड़ा बंगला है, दो-दो कार, खर्च करने को पैसे हैं, मनचाहे वस्त्र मिल सकते हैं... घर में नौकर हैं ... यह सब होते हुए भी मैं अपने आपको दुःखी और अशांत महसूस करता हूँ... मुझे यह वैभव नहीं मिलता तो कोई अफसोस नहीं होता ... मनवांछित स्नेह और सद्भाव, त्याग और समर्पण मिल जाता तो...'
तो क्या होता? तुझे स्वर्ग मिल जाता, शायद ? परन्तु मोक्ष नहीं मिलता । स्वर्ग भी तो क्षणिक है न! स्वर्ग शाश्वत नहीं ! मोक्ष-मुक्ति शाश्वत है। जब तक बंधनों में सुख की कल्पना बनी हुई है तब तक मुक्ति प्रिय नहीं लगती । तू यह विचार कर कि यदि तेरे परिवार के सदस्यों का प्रेम तुझे मिलता तो तू परमात्मा के प्रेम को पाने का इतना प्रयत्न करता ? परमात्मभक्ति में इतनी
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