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जिंदगी इम्तिहान लेती है
एक बात तू अन्तःकरण में बिठा ले कि तू इस संसार में असहाय नहीं है। असहायता की कल्पना दूर फेंक दे। एक व्यक्ति तेरे प्रति अच्छा व्यवहार नहीं करता है, इससे क्या हो गया? दूसरे कितने अच्छे आदमी तेरे प्रति स्नेह और सदभाव धारण करते हैं, उनका विचार कर | तू तृप्त बनेगा। दिव्य दृष्टि से देखेगा तो अनन्त सिद्ध परमात्मा तुझे प्रति समय देख रहे हैं! तुझे जान रहे हैं! तू उनकी तरफ देख तो सही! वे शुद्ध-बुद्ध-मुक्त आत्माएँ निरन्तर अपनी ओर देख रही हैं और हम को बुला रही हैं... कितनी उत्तम आत्माएँ हैं वे!
कैसा है, मनुष्य मन का स्वभाव । एक रागी, द्वेषी और अज्ञानी मनुष्य अपनी तरफ नहीं देखता है, उसका दु:ख अनुभव करते हैं और वीतराग सर्वज्ञ परमात्मा जो निरन्तर अपनी ओर देखते हैं, उनकी ओर देखने की भी हमें फुरसत नहीं! ज़्यादातर लोगों को यह ज्ञान ही नहीं होता कि अनन्त-अनन्त शुद्ध, बुद्ध आत्माएँ हमें देख रही हैं!
उन अनन्त मुक्तात्माओं की ओर देखने का प्रयत्न करना, तुझे आनंद आएगा। इसके लिए तुझे 'ध्यान' में जाना पड़ेगा। थोड़ी क्षणों के लिए इन्द्रियों को बाह्य दुनिया से खींच लेना और मन को समझा कर अपने पास रख लेना। कल्पना के आलोक में स्फटिक रत्न की विशाल सिद्धशिला दिखाई देगी। वहाँ कोई स्थूल आकृति नहीं दिखाई देगी... परन्तु अनन्त-अनन्त ज्योति के दर्शन होंगे... उस ज्योति में पूर्ण चैतन्य का आविर्भाव दिखाई देगा... बस, देखते ही रहना... तू अपूर्व आनंद का अनुभव करेगा। अगम अगोचर प्रदेश में विचरण करने का कैसा दिव्यानंद होता है... तुझे उसका अनुभव होगा।
इस प्रकार प्रतिदिन ४-५ मिनिट भी ध्यान करता रहेगा तो उसका गहरा असर तेरे हृदय पर होगा। कई पापकर्मों के बंधन टूट जाएँगे, कई दिव्य गुण आत्मा में जागृत होंगे। तेरे मुख पर ऐसी आभा छा जाएगी कि हिंसक पशु भी तुम से प्यार करने लगेंगे। तेरे हृदय से हिंसा पलायन हो गई होगी... न होगा द्वेष और न होगी वैर भावना । तेरी दृष्टि करुणा का अमृत बहाती होगी। तेरी वाणी समता की वृष्टि करती होगी। तू दूसरों की दया-करुणा की याचना नहीं करेगा, तू संसार के जीवों को दया-करुणा प्रदान करेगा। ___ क्या मेरी बात पसन्द आई? क्यों पसन्द नहीं आएगी? तुम्हारी मेरे प्रति जो अगाध श्रद्धा है, दिव्य समर्पण है, ये श्रद्धा और समर्पण मेरी एक-एक बात तेरे अन्तःकरण में पहुँचाते हैं। पूर्णानन्दी आत्माओं के साथ 'ध्यान' में मिलन होने से तेरी आत्मा भी पूर्णानंद के महोदधि में तैरने लगेगी।
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