Book Title: Jindgi Imtihan Leti Hai
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 120
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७ जिंदगी इम्तिहान लेती है कहते हैं, उनका भी योगक्षेत्र में प्रवेश हो सकता है। उनमें वैराग्य जागृत हो ही जाता है। तू 'वैराग्य' का अर्थघटन क्या करता है? वैराग्य का सम्बन्ध जितना बाह्य आचरण के साथ नहीं है, उतना मनुष्य के हृदय के साथ है। विरक्त हृदय का कभी तो बाह्य-आचरण में प्रतिबिम्ब दिखता है, कभी प्रतिबिम्ब नहीं भी दिखे। अपनी आदत है, बाह्य-आचरण से मनुष्य को नापने की! यह अपनी एक बहुत बड़ी भ्रमणा है। बाह्य आचरण से उसका हृदय भिन्न हो सकता है। हृदय से भिन्न उसका बाह्य आचरण हो सकता है। बाह्य आचरण में रागप्रचुरता दिखे, और हृदय में वैराग्य हो सकता है! वैसे, बाह्य जीवन व्यवहार में वैराग्य दिखे पर हृदय में राग की आग जलती हो सकती है। दूसरे मनुष्यों में वैराग्य का निर्णय करना अपने लिए मुश्किल है। हम तो अपने ही विषय में निर्णय कर सकते हैं कि हम में वैराग्य है या नहीं। शांतिपूर्ण, प्रसन्नतापूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए 'वैराग्य' अनिवार्य है। किसी भी जड़-चेतन पदार्थ से अपना लगाव नहीं रहना चाहिए, यही वैराग्य है। जड़-चेतन पदार्थ का उपयोग करना एक बात है, लगाव होना दूसरी बात है। विरक्त मनुष्य जड़-चेतन पदार्थ का उपयोग तो करता है, परंतु उन पदार्थों से उसका लगाव नहीं होता है। ___ संयमजीवन में वैराग्य तो आवश्यक है ही, वैराग्य के अलावा दूसरी बहुत सी बातें अपेक्षित हैं। सच्चे हृदय से, मोक्षमार्ग की आराधना करने की लगन से यदि संयमजीवन यानी साधु जीवन स्वीकारा जाता हो तो वैराग्य के अलावा दूसरी अनेक योग्यताएँ अपेक्षित हैं। ___ एक युवक ने एक बार मुझे पूछा था : 'वैराग्य में क्या वह आनंद, वह खुशी, वह मस्ती होती है, जो राग में होती है?' मैंने उसको कहा था : 'तूने राग में ही आनंद और मस्ती का अनुभव किया है, मैंने दोनों का अनुभव किया है! संसार में मैंने रागजन्य मस्ती का अनुभव किया है और श्रमणजीवन में वैराग्य की मस्ती का भी अनुभव किया है। रागजन्य मस्ती से वैराग्यजन्य मस्ती... आनंद... खुशी कितनी अपूर्व होती है... मैं शब्दों में कैसे बताऊँ? तू अनुभव करके देख! भर्तृहरि को पिंगला रानी के संग में जो खुशी, जो मस्ती का अनुभव हुआ था, इससे ज़्यादा मस्ती का अनुभव जंगलों में परमात्मा के ध्यान में हुआ होगा। निर्जन वनों में एकाकी परिभ्रमण की भी एक अद्भुत मस्ती होती है। 4040 For Private And Personal Use Only

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