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जिंदगी इम्तिहान लेती है लिए सदैव चिन्ताग्रस्त रहता है! जो सुख चला गया उसको याद करता हुआ रोता है! बड़े-बड़े लोग रोयें हैं! भगवान अजितनाथ के भ्राता सगर चक्रवर्ती का एक सुख चला गया था... पुत्रसुख चला गया था... तब वे कितने बेचैन बन गए थे? श्री राम का चित्त कैसा विभ्रान्त हो गया था, जब लक्ष्मणजी की मृत्यु हो गई थी। महासती सीता ने कैसा कल्पान्त किया था, जब रावण उसका अपहरण करके ले जा रहा था। एक-एक सुख का अभाव मनुष्य को दुःखी कर देता है।
अभी-अभी थोड़े दिन पहले एक भाई मेरे पास आए थे, मेरे परिचित थे। उसके मुख पर ग्लानि थी। कुछ औपचारिक बातें होने के बाद उन्होंने कहा :
'महाराज साहब, अभी इन दिनों में बहुत अशांति है... कुछ उपाय बताइए।' मैंने पूछा : 'किस बात की अशांति है आपको?' मैं जानता था कि उनके पास चार-पाँच लाख रूपये हैं, बंगला है, कार है, मार्केट में दुकान है, दो लड़के हैं... पत्नी है... इज्जत है... फिर भी वह महानुभाव अशांति की शिकायत ले कर आए थे! उन्होंने कहा :
'दूसरा तो कोई दु:ख नहीं है, पर लड़के अब मेरा कहा नहीं मानते! मेरा तिरस्कार कर देते हैं... मुझे घोर दुःख होता है।' उस पचपन साल के प्रौढ़ पुरुष की आँखें गीली हो गई... बात करते-करते। __'आप क्यों इस बात को इतनी Hard and Fast लेते हैं? मन पर इतना भार क्यों ढोते हो? आपकी धर्मपत्नी तो आपका कहा मानती है न? आपका नौकर आपका अपमान नहीं करते हैं न? समाज के लोग आपकी इज्जत करते हैं न? तो फिर आप क्यों अशांत बनते हो? दो लड़के भले आपका कहा न मानें! आप उन दोनों से बात ही मत करो। जो लोग आपसे अच्छा व्यवहार करते हैं उनसे बातें करो, हँसो और मन को हल्का करो।'
'परन्तु महाराज साहब, क्या बताऊँ आपको... जब वे लड़के मेरे सामने आते हैं...मेरे सामने देखते हैं...मुझे लगता है कि उनकी विषैली आँखें मेरा...' वे रो पड़े । मैंने उनको रोने दिया। दो तीन मिनट मैं मौन रहा। उन्होंने रोना बंद किया तब मैंने कहा : ।
'आप क्यों भूल जाते हो कि आपके पास कितने सुख हैं! आप उन सुखों का अच्छा उपयोग करें। एक सुख नहीं है तो कोई परवाह नहीं, दूसरे अनेक सुख हैं, आप इस पुण्योदय का उपयोग करें। हाँ, एक बात है, आप आत्मनिरीक्षण करें, यदि आपको अपनी कोई गलती मालूम पड़े तो उस गलती को दूर करने का प्रयत्न करें।'
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