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जिंदगी इम्तिहान लेती है
३२ ® नीरवता, खामोशी, जनशून्यता के आलोक में उठती संवेदनाएँ, भीतरी ___ आनंद व प्रसन्नता से छलछलाती होती है। ® संयम का राग, चारित्र का प्रेम उत्तम गुण के रूप में बताया गया है, शास्त्रों
में! @ आनंदघनजी जैसे उच्चकक्षा के योगीपुरुष ने परमात्मा ऋषभदेव की स्तवना
के माध्यम से प्रेमतत्त्व का गहरा एवं अद्भुत विश्लेषण-विवेचन किया है। ® प्रेम के वास्तविक रूप-स्वरूप को समझे बगैर, आजकल प्रेम के नाम पर
वासना के नाटक खेले जा रहे हैं। ® शोषण और स्वार्थ के संकीर्ण दायरे में प्रेम के फूल खिल पाना मुमकिन
कैसे होगा?
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पत्र : ८
प्रिय गुमुक्षु!
धर्मलाभ, तेरा पत्र पाकर आत्मा प्रसन्न हुई। यूँ भी इन दिनों में मेरी अन्तःप्रसन्नता बढ़ती जा रही है, ऐसा अनुभव कर रहा हूँ।
आषाढ़ के बादल घिर आए हैं। सारा नगर बादलों की छाया में स्तब्ध है। अपूर्व नीरवता है। शून्य का स्पर्श भी कितना अच्छा लगता है। मेरे सुषुप्त प्राणों को जगा दिए हैं...। इस घनीभूत एकान्त में मैं अपने ही आमने-सामने हो गया हूँ। देख रहा हूँ अपने को! जो मैं हूँ- शुद्ध आत्मद्रव्य! मुक्त आत्मद्रव्य! बुद्ध आत्मद्रव्य! सच्चिदानंद पूर्ण आत्मद्रव्य! असीम और विराट प्रकृति मानो कि है ही नहीं! दिखती है लोक के शीर्ष पर अर्धचन्द्राकार सिद्धशिला । प्रकृति के सारे बन्धनों से मुक्त होकर उस सिद्ध भूमि पर आसीन हो गया हूँ! पूर्णज्ञानस्वरूप हो गया हूँ। पूर्णानंद ही पूर्णानंद है यहाँ।। ___ परन्तु अचानक यह क्या होने लगा? घनघोर बादल गरजने लगे। अवनि
और आकाश को विदीर्ण करती हुई बिजलियाँ कड़कने लगी। दिगन्तों से उठती हुई वृष्टि-धारा में नगर चलायमान होने लगा। पुनः प्रकृति की तरफ देखने लगा। चारों ओर निहारा । ओह! पास में तेरा श्वेत पत्र पड़ा है...उस
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