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जिंदगी इम्तिहान लेती है
६२ * नि:संग, निर्लेप और अनासक्त हृदय में शुष्कता या रुक्षता नहीं होती... वहाँ
पर करुणा की आर्द्रता रहती है...स्नेह की सिक्तता रहती है! ® एषणा और एतराजी हमेशा स्वार्थ व शोषण का ताना-बाना बुनते रहते हैं! ® मैत्री का अर्थ है, औरों के हित की चिन्ता करना। दूसरों की भलाई के बारे __ में मात्र सोचना ही नहीं... वरन् प्रयत्न भी करना। ® सहनशीलता एवं समर्पण की सुदृढ़ नींव पर ही मैत्री का महल स्थिर रह
सकता है। @ कामनारहित, स्पृहारहित और इच्छारहित हृदय से ही मैत्री का रिश्ता
रचाना संभव हो सकेगा।
पत्र : १४
प्रिय मुमुक्षु।
धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला।
गतानुगतिक जीवन व्यतीत करने वालों के लिए यह मार्गदर्शन नहीं है। मात्र वैषयिक और काषायिक जीवनयापन करने में आनंद मानने वालों के लिए यह प्रेरणा-स्रोत नहीं है।
निःसंग और निर्लेप जीवन के विषय में एक भ्रमणा फैली है कि 'वैसा जीवन शुष्क होता है, वैसे जीवन में कोई आनंद नहीं होता।' यह मात्र भ्रमणा है, मिथ्या कल्पना है। निःसंग और निर्लेप हृदय में शुष्कता नहीं होती है, परंतु करुणा होती है, आर्द्रता होती है। वहाँ निराशा नहीं होती है, परंतु जीवमैत्री का दिव्य आनंद होता है। तू स्थिर चित्त से गहराई में जाकर सोचेगा तो ही यह बात समझ में आएगी। अच्छा, क्षणभर मान लें कि निःसंग और निर्लेप जीवन में मजा नहीं आता है, तो क्या रागपूर्ण और आसक्ति पूर्ण जीवन में मजा आता है? राग और आसक्ति कितना मानसिक तनाव पैदा करती है, क्या मुझे बताना पड़ेगा? दुनिया क्यों दुःखी है? क्यों हर व्यक्ति दुःख और अशांति की शिकायत करता है? सुखों के प्रति राग है, प्राप्त सुखों में प्रगाढ़ आसक्ति है। दुःखों के प्रति द्वेष है और दुःखों की कल्पना का भय है। इसी से मनुष्य
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