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-सत्य के द्वार की कुंजी: सम्यक-श्रवण
भूले बैठे हैं और जो हमारा है। और जो हमारा स्वभाव है और फिर महावीर कहते हैं, 'उभयं पि जाणए सोच्चा।' दोनों देख जिसकी तरफ हमने पीठ कर ली है। और जिसकी तरफ हमने | लिये। क्या है सत्य, क्या असत्य। देख लिया क्या है आंख उठानी बंद कर दी है और जिस तरफ हमने पहुंचना ही | मंगलदायी, क्या अमंगलदायी। 'जं छेयं तं समायरे।' यह छोड़ दिया है। हम भल ही गये हैं कि घर भी लौटना है। बढ़ते ही उनकी बड़ी अनूठी बात है। वह जरा भी किसी पर अपने को चले जाते हैं संसार में।
आरोपित नहीं करना चाहते। वह कहते हैं, फिर तुम्हारी अपनी लेकिन यह स्वप्न!
इच्छा। फिर तुम्हें जो श्रेयस्कर लगे। वह यह नहीं कहते कि तुम कुछ नहीं तो कम से कम ख्बाबे-सहर देखा तो है
सत्य का अनुसरण करना। यह तो बात ही गलत हो जाएगी। यह सुबह का सपना ही सही अभी, किसी की वाणी से पहली | सत्य को जानकर कभी ऐसा हुआ है कि किसी ने अनुसरण न दफा तरंगें उठी हैं, और सुबह का भाव, सुबह का बोध जगा है। | किया हो? वह यह नहीं कहते कि असत्य का त्याग करना। जिस तरफ देखा न था अब तक उधर देखा तो है
| ऐसा कभी हुआ ही नहीं कि असत्य को जानकर और त्याग न हो लेकिन यह तभी संभव होगा, जब तुम्हारा हृदय शून्य और गया हो। कंकड़-पत्थर पहचान लिए कंकड़-पत्थर हैं फिर कौन शांत हो, मौन हो।
तिजोड़ी में रखता है? हां, जब तक हीरों का भ्रम था तब तक मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन एक नदी के किनारे से गुजर रहा तिजोड़ी में संभाले बैठे थे। जिस दिन पहचान आ जाती है था। सांझ घिरने लगी। सूरज ढल चुका है। और एक आदमी कूड़ा-कर्कट, कूड़ा-कर्कट है, उसे घर के बाहर हम फेंक आते डूब रहा है; और वह आदमी चिल्लाया, सहायता करो, | हैं। त्याग थोड़े ही करना पड़ता है, उद्घोषणा थोड़े ही करनी सहायता करो, मैं डूब रहा हूं! मुल्ला किनारे पर खड़ा है, वह पड़ती है कि देखो, आज हम बड़ा त्याग कर रहे हैं, सारा बोला हद्द हो गयी; अरे, डूबने में किसी से क्या सहायता की कूड़ा-कर्कट कचरे-घर में डाल रहे हैं। जब कूड़ा-कर्कट हो जरूरत, डूब जाओ! इसमें सहायता की क्या जरूरत है! गया, तो त्याग कैसा!
तुम कुछ का कुछ सुन ले सकते हो। इससे सावधान रहना। इसलिए ध्यान रखना, महावीर त्याग करने को नहीं कहते। लेकिन जब तक तुमने मन को बिलकुल हटाकर न रखा हो, तुम वह तो कहते हैं सिर्फ जागकर देख लो; जो ठीक है, वही तुम्हारा कुछ का कुछ सुनोगे ही।
मार्ग हो जाएगा, जो गलत है, उस पर कभी कोई गया ही नहीं। इसलिए ध्यान श्रवण के लिए मार्ग बनाता है। ध्यान का अर्थ जानकर कभी कोई ने दीवाल से निकलने की कोशिश की है? है, मन की सफाई। ध्यान का अर्थ है, अ-मन की तरफ यात्रा। द्वार दिख गया, फिर लोग द्वार से निकलते हैं, कौन सिर तोड़ता है |-ध्यान का अर्थ है, थोड़ी घड़ियों को मन की धूल से चित्त के दर्पण दीवाल से!
को बिलकुल साफ कर लेना। महावीर के पास लोग आते, तो फिर जो श्रेयस्कर हो उसका आचरण करना।' फिर तुम्हें जो महावीर कहते-कुछ देर ध्यान, फिर सुनना।
श्रेयस्कर लगे, इतने बलपूर्वक महावीर कहते हैं कि फिर जो इसलिए मैं इतना जोर देता हं ध्यान पर। तम मझे सीधा-सीधा श्रेयस्कर हो, क्योंकि वह जानते हैं कि सत्य श्रेयस्कर है। पहचान न सुन सकोगे। कई बुद्धिमान आ जाते हैं, वह कहते हैं ध्यान भर की कमी है। ज्ञान भर की कमी है। वगैरह से हमें कुछ मतलब नहीं, हमें तो आपको सुनने में मजा अक्सर लोग मेरे पास आते हैं, वह कहते हैं हमें पता है कि आता है। मर्जी आपकी! लेकिन यह मजा कहीं ले जानेवाला | ठीक क्या है, लेकिन क्या करें गलत हो जाता है। पता संदिग्ध नहीं। यह बुद्धि की खुजलाहट है। खुजलाने से थोड़ा अच्छा है। कहते हैं हमें मालूम है कि क्रोध बुरा है, लेकिन हो जाता है। लगता है, मीठा-मीठा लगता है। जल्दी ही लहूलुहान हो कहते हैं, बहुत बार कसम भी खायी, व्रत भी लिया, फिर भी हो जाएंगे। नहीं, इससे कछ सनने से सार न होगा। क्योंकि सच तो जाता है। तो इसका अर्थ इतना ही है कि अभी जाना नहीं कि यह है, सुन तुम पाओगे ही न बिना ध्यान के। ध्यान तुम्हें तैयार क्रोध बुरा है। अभी क्रोध की आग अनुभव नहीं बनी। अभी करेगा कि तुम सुन सको।
क्रोध का जहर खुद के कंठ को जलाया नहीं। किसी और ने कहा
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