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ज़मीन स्पष्ट रुप से पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण चारों दिशाएँ, निकट के स्थल / स्थलों की समांतर होनी चाहिये, उस स्थल के कोनों में पड़नेवाली नहीं, अर्थात् पूर्वउत्तर आदि कोनों में (ळप रपसश्रशी) पड़ते न हों। इसमें भी ईशान कोण को घटानेवाली या काटनेवाली जमीन न लें परंतु ईशान को बढ़ानेवाली, बाहर निकालनेवाली जमीन लें। ईशान के सिवा अन्य किसी भी कोने में बढ़ जानेवाली जमीन अच्छी नहीं होने से बिलकुल खरीदें नहीं। जिस जमीन के चारों ओर रास्ते, सड़कें हों ऐसी भूमि "विदिशा" स्थल अथवा "ब्रह्मस्तवम्" स्थल कहलाती है और सर्वप्रकार के सुख, स्वास्थ्य, शांति, संवादिता एवं संपत्ति प्रदान करती है। ऐसी सर्वोत्तम भूमि सहज में नहीं मिलती। बेंगलोर का "विधानसौधा" भवन प्रायः इसका उदाहरण है।
सामान्य सामाजिक मानदंडों से भी सुरक्षा, शांति, स्वास्थ्य, संवादिता आदि के लियेपास-पड़ोस अच्छे, सुशील, सच्चरित्र, निर्व्यसनी लोगों का उचित माना गया है। सत्संग स्थान, धर्माराधना स्थान, जिनालय आदि निकट होने चाहिये ताकि सत्साधन सहज ही मिलते रहें सारे परिवार को। जैसा कि अन्यत्र इस ग्रंथ में कहा गया है जिनमंदिर के समीपस्थ-सामनेवाले और दाहिनी ओर (जिनप्रतिमा की Right Hand Side) के भूमि स्थान को अच्छा, शुभप्रदाता माना गया है। जिनप्रासाद का अस्तित्व ही ऐसे शुभ, प्रशांत आंदोलन (Vibration) प्रवाहित करता रहता है। प्रार्थना करें कि हमें ऐसी, जिनचरणों के निकट रखनेवाली भूमि प्राप्त हो।
॥ॐ शान्तिः
॥
जन-जन का
जैन स्तुिसार
जैन वास्तुसार