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* दिशा साधन यंत्र *
छाया
पश्चिम
पर्व
छाया
दक्षिण
अथवा शंकु की छाया तीरछी “इ” बिंदु के पास वर्तुल में प्रवेश करती हुई दिखाई दे तो "इ" को पश्चिम बिंदु और “उ” बिंदु के पास बाहर निकलती हुई दिखाई दे तो “उ” को पूर्व बिंदु समझें। अब 'इ' बिंदु से “उ” बिंदु तक सरल रेखा खींचें तो वह पूर्वपश्चिम रेखा होगी।अब मध्य बिंदु "अ" से पूर्ववत् उत्तर-दक्षिण रेखा खींचें। समचोरस स्थापना
समतल भूमि पर एक हाथ के विस्तारवाला वर्तुल बनायें, उस वर्तुल में एक अष्टकोण और उस अष्टकोण के कोणों की दोनों ओर 17 अंगुल की भुजावाला एक समचोरस बनायें।
गणितशास्त्र के हिसाब से एक हाथ के विस्तारवाले वर्तुल में आठ कोण बनाये जाय तो प्रत्येक भुजा का नाप नौ अंगुल और समचोरस बनाया जाय तो प्रत्येक भुजा का नाप सत्रह अंगुल होता है। अष्टमांश स्थापना
* समचोरस भूमि साधन यंत्र * समचोरस भूमि की प्रत्येक दिशा में बारह-बारह भाग बनायें, उसमें पांच भाग मध्य में और साढ़े तीन-साड़े तीन भाग दोनों ओर कोने में रखें जिससे ठीक अष्टमांश होगा।'
इस प्रकार के अष्टमांश अधिकतर मंदिर एवं राजमहलों के मंडपों में बनाये जाते हैं।
जैन वास्तुसार
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