________________ - प्रो. प्रतापकुमार टोलिया - सुमित्रा प्र. टोलिया द्वारा सम्पादित-अनुवादित जैन वास्तुसार गृहादि वास्तु - जिन प्रतिमा-मानादि एवं - जिनप्रासाद वास्तु-शिल्प 'वास्तुसार प्रकरणादि' जैन-अन्य प्राचीन-अर्वाचीन ग्रंथों के अध्ययन, गुरुगम एवं स्वानुभव-निरीक्षणाधारित सर्वोपयोगी ग्रंथसंक्षेप।। “भाई प्रतापकुमारजी टोलिया ने इस कृति का हिन्दी अनुवाद एवं पुन: सम्पादन किया है, एतदर्थ हमारी ओर से उनके कार्य हेतू हार्दिक अभिनन्दन एवं आशीर्वाद हैं / " - nova 30/1309 पू. कविमनीषि राष्ट्रसंत आचार्यश्री वास्तु-शिल्पज्ञ जयंतसेनसूरीश्वरजी इस परिश्रमपूर्ण ज्ञान-किरण रूप सृजन का पठन-अध्ययन नया ज्ञान देकर आपके भीतर विवेक की शक्ति जगाएगा, अपनी समस्याएँ स्वयं सुलझाने की अंतर्दृष्टि देगा, अनेक गृह-वास्तु-दोषों से बचाकर, मंदिर की भी आशातनाओं से ऊपर उठाकर, प्रतीक्षा कर रही अनेक लौकिक-लोकोत्तर सिद्धियों के द्वार को। दिखाएगा। जनसामान्य के प्रत्येक व्यक्ति के लिए, विशेषकर श्रावक-श्राविका के लिए, गृहवास्तु का हिस्सा; प्रत्येक प्रभुप्रतिमा पूजक के लिए जिनप्रतिमा-मानादि का विभाग एवं जिनप्रासाद का वास्तुशिल्प का शास्त्रीय सिद्धांत ज्ञान प्रत्येक मंदिर-ट्रस्टी, विधिकारक, शिल्पी, जिज्ञासु को उपयोगी एवं उपकारक होगा। इनमें से। कोई न कोई बात प्रत्येक जन को किसी न किसी रूप से उपादेय - अपनाने योग्य न लगी तो संपादकलेखक अपना परिश्रम निष्फल समझेंगे।। इस निष्कर्ष वास्तुग्रंथ के जन-जन के लिए सारगर्भित उक्त तीन विभागों में भूमिचयन - भूमिपरिक्षा से लेकर संपूर्ण भवन-निर्माण तक के पद-पद पर उपयोगी एवं उपादेय ऐसा मार्गदर्शन भरा पड़ा है। प्राचीन जैनविद्या वास्तु-ग्रंथों के उपरान्त अर्वाचीन वास्तु-विज्ञान का समन्वय एवं सारसंक्षेप इस में आप पाएँगे / प्रत्येक जन के लिए निर्मित यह ‘जन-जन का वास्तुसार' ग्रंथ उसमें निहित चित्र-अंकनों (charts) के साथ त्वरित। मार्ग-दर्शिका (Ready Reference Handbook) का कार्य करेगा, जो आप स्वयं अपने अनुभव से। देखेंगे। ___ आवरण चित्र : वास्तुशिल्प का अनुपम नमूना - श्री शत्रुजय तीर्थ जिनालयसमूह Also contains a few useful जिनभारती articles presenting the uniqueness and the वर्धमान भारती इन्टरनेशनल फाउन्डेशन essence of Jain Vastu प्रभात काम्पलेक्स, के.जी. रोड़, बेंगलोर - 560 009 principles in English. दूरभाष: 080-2225 1552 / 2666 7882 / 6595 3440 / ISBN 81-901341-10