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जिस प्रकार चार अक्षरवाले छंद के प्रस्तार के 16 भेद होते हैं उस प्रकार लघुरुप शाला के द्वारा ध्रुव, धान्य आदि सोलह प्रकार के घर होते हैं। लघु के स्थान में शाला
और गुरु के स्थान में दीवार समझें। जिस प्रकार प्रथम चारों गुरु अक्षर हैं उसी प्रकार प्रथम ध्रुव नाम के घर की चारों दिशाओं में दीवारें हैं लेकिन शाला नहीं है। प्रस्तार के दूसरे भेद में प्रथम लघु है उस प्रकार यहाँ थान्य नामक दूसरे घर में पूर्व दिशा में शाला समझनी चाहिए। प्रस्तार के तीसरे भेद में दूसरा अक्षर लघु है उस प्रकार यहाँ तीसरे जय नाम के घर में दक्षिण दिशा में शाला समझनी चाहिए। प्रस्तार के चौथे भेद में प्रथम दो अक्षर लघु हैं उस प्रकार यहाँ चौथे नन्द नाम के घर में पूर्व और दक्षिण दिशा में एक एक शाला समझनी चाहिए। इसी प्रकार हरेक घर में समझ लें। अधिक जानकारी के लिये नीचे का गृहप्रस्तार देखें। ध्रुव आदिघरों का फल अपने नाम के अनुसार जानें।
ध्रुवादि घरों का फल “समरांगण' में इस प्रकार बताया गया है:
धान्य 2
जय 3
नंद4
खर-5
कान्त 6
मनोरम
मुमुख
दुर्मुख
सुपक्ष 11
धनद 12
क्षय 13
आकन्द 14
विपुल 15
विजय 16
ध्रुव नाम का प्रथम घर जयकारक है। धान्य नाम का घर धान्य की वृद्धि करनेवाला है। जय नाम का घर शत्रुओं को जीतनेवाला है। नंद नाम का घर सर्व प्रकार की समृद्धि देता है। खर नामक घर क्लेशदायक है। कान्त नामक घर में लक्ष्मी प्राप्त होती है एवं आयुष्य आरोग्य तथा धनसंपत्ति की वृद्धि होती है। मनोरम नाम का घर स्वामी के मन को संतोष देनेवाला बनता है। सुमुख नाम का घर राज सन्मान प्राप्त करानेवाला सिद्ध होता है। दुर्मुख नाम का घर कलह कराता है। क्रूर नाम का घर भयंकर व्याधि एवं भय को जन्म देने वाला होता है। सुपक्ष घर परिवार की वृद्धि करता है। धनद नामक घर सुवर्ण, रत्न तथा गाय आदि पशुओं की वृद्धि करता है। क्षय नामक घर सर्वक्षयकारक सिद्ध होता है। आनंद नाम का घर ज्ञातिजनों की मृत्यु करवाता है। विपुल नामवाला घर आरोग्य एवं कीर्तिदाता होता है विजय नामक घर सर्व प्रकार की संपत्ति का दाता सिद्ध होता है।
जैन वास्तुसार
जन-जन का 3161वास्त
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