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प्रतिमा का परिमाण - प्रमाण : समचतुःसंस्थान : पद्मासनस्थ ___ दायें घुटने से बाये कंधे तक एक, बायें घुटने से दाये कंधे तक दूसरा, एक घुटने से दूसरे घुटने तक तीसरा, नीचे वस्त्र की पाटली (मध्य भाग) से ऊपर कपाल तक चौथा • इस प्रकार चारों सुत का नाप बराबर हो तो वह प्रतिमा समचोरस संस्थान • समचतु:संस्थान युक्त कही जायेगी। पद्मास्थनस्थ प्रतिमा शुभकारक है।
* वर्तमान में पंचधातु" की प्रतिमाएँ निर्मित होकर उपयोग में ली जाती हैं उस के विषय में गीतार्थ आचार्यगण एवं विद्वद्नन प्रकाश डालेंगे, यह ग्रार्थना है।
पद्मासनस्थ प्रतिमा
बैठी प्रतिमा : बायीं जंघा और पिंडी पर दायां पैर एवं दायां हाथ एवं दायीं जधा और पिंडी पर बायां पैर - दायां हाथ पद्मासन। खड़ी प्रतिमा के अंग विभाग-प्रमाण
1. कपाल, 2. नासिका, 3. मुख, 4. ग्रीवा (गरदन), 5. हृदय, 6. नाभि, 7. गुह्य, 8.जंघा, 9. घुटना, 10. पिंडी एवं 11. चरण - ये ग्यारह स्थान अंग विभाग केजानें।
कपाल आदि इन ग्यारह अंग - विभागों के प्रमाण अनुक्रम से 1. चार, 2. पांच, 3. चार, 4. तीन, 5. बारह, 6. ग्यारह, 7.बारह, 8. चौबीस, 9. चार, 10. चौबीस और 11. चार अंगुल का जाने। अर्थात् 1. कपाल चार अंगुल, 2. नासिक पांच अंगुल, 3. मुख चार अंगुल, 4.गर्दन तीन अंगुल, 5.गर्दन से हृदय तक बारह अंगुल, 6. लक्ष्य से नाभि तक बारह अंगुल, 7. नाभि से गुह्य भाग तक बारह अंगुल, 8.गुह्य भाग से जंघा (जानु) तक चौबीस अंगुल, 9.घुटना चार अंगुल, 10. पिंडी (घुटने से चूंटो तक) चौबीस अंगुल और 11. पिंडी (घूटी) से पैर के तलवे • चरण तक चार अंगुल- इस प्रकार खड़ी- कायोत्सर्गमुद्रा की प्रतिमा के अंग विभागका प्रमाण है। बैठी - पद्मासनस्थ - प्रतिमा के अंग विभाग - प्रमाण-मान
1. कपाल, 2. नासिका, 3.मुख, 4.गर्दन, 5. हृदय (छाती), 6. नाभि, 7.गुह्य और 8.जानु - ये आठ अंग बैठी - पद्मासनस्थ - प्रतिमा के अंग विभाग अनुसार जानें।
जैन वास्तुसार
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