Book Title: Jan Jan Ka Jain Vastusara
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 109
________________ उंबर का उदय कुंभी के उदय से आधा भाग अथवा तीसरा भाग अथवा चौथा भाग नीचा बनवायें । शंखावटी का मान खुरा के उदय के बराबर (समानांतर) शंखावटी का उदय करें, शंखावटी की लम्बाई द्वार के विस्तार जितनी करें और लंबाई से आधी चौड़ी निकलती हुई बनवायें । शंखावटी की लंबाई के तीन भाग करें, उसमें दो भाग का बीच में अर्धचन्द्र करें और एक भाग के दो अर्थात् आधे आधे भाग के अर्धचन्द्र की दोनों बाजु एक-एक गगारा करें । गगारा और अर्द्धचन्द्र के बीच में शंख और वेल सहित कमल पुष्प बनवायें । चौबीस जिनालय का क्रम चौबीस जिनालय युक्त देरासर निर्मित करना हो तो मध्य के प्रमुख देरासर के सन्मुख तथा दायीं और बायीं बाजु की ओर इन तीनों दिशाओं में आठ आठ देहलियाँ जगती के अंदर बनवायें । चौबीस जिनालय में प्रतिमा का स्थापन क्रम देहलियों में सिंहद्वार ( प्रवेशद्वार) के दाहिनी ओर से अर्थात् प्रथम देरासर में प्रवेश करते हुए अपनी बायीं ओर से अनुक्रम से ऋषभदेव आदि जिनेश्वर की मूर्तियों की सृष्टिमार्ग से स्थापना करें। इस प्रकार सर्व जिनालय में समझें । चौबीस तीर्थंकरों में से जिस की मूर्ति एक मूलनायक हो, उस तीर्थंकर की मूर्ति जिस देहली की पंक्ति में आती हो उस स्थान पर सरस्वती देवी की मूर्ति स्थापित करें। बावन जिनालय का क्रम चौंतीस देहलियाँ मध्य के मुख्य प्रासाद की बायीं और दायीं ओर अर्थात् दोनों ओर सत्रह सत्रह देहलियाँ, नव देहलियाँ पीछे के भाग में और आठ देहलियाँ आगे, इस प्रकार कुल मिलाकर इक्यावन / एकावन देहलियाँ और बीच में एक मुख्य प्रासाद मिलकर बावन जिनालय बनते हैं । बहत्तर जिनालय का क्रम मध्य के मुख्य जिन मंदिर की बायीं और दायीं ओर पचीस पचीस पीछे ग्यारह और आगे के भाग में दस, इस प्रकार एकोत्तर (इकत्तर - 71) देहलियाँ और एक मध्य का मुख्य प्रासाद मिलकर कुल बहत्तर जिनालय बनते हैं । जन-जन का 85

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