Book Title: Jan Jan Ka Jain Vastusara
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Vardhaman Bharati International Foundation

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Page 121
________________ स्वयं भी ध्यानलीन होकर नहीं देखा?... क्या आपने प्राकृतिक पर्वतिकाओं के बीच बसे राणकपुर के प्रशांत तीर्थधाम में, नीरव रात्रि में कभी आकाश के तारों के नीचे बैठकर प्रशमरस पूर्ण जिनप्रतिमा के दर्शन का आनंद नहीं उठाया?... क्या आपने बेंगलोर नगर के बाहर ही बसे विश्वप्रसिद्ध निसर्गधाम 'जिंदल नेचर क्योर इन्स्टीट्यूट' में प्रकृतिमैया का सान्निध्य पाकर तन-मन-आत्मा का स्वास्थ्य कभी नहीं संजोया, जो कि महर्षि अरविंद की परिकल्पना के 'धरती पर उतर आए दिव्यलोक' को एवं श्रीमद् राजचंद्रजी की आर्ष-भावना के सात्त्विक, सप्तव्यसनरहित, सात्त्विक स्वर्ग का ही साक्षात्कार कराता है? कितने कितने उदाहरण दें - पाँडिचेरी का 'ऑरोविले', श्री जे. कृष्णमूर्ति का विद्याधाम 'ऋषि वॅली स्कूल', उरली कांचन-पूना का महात्मा गाँधीजी द्वारा संस्थापित निसर्गोपचार आश्रम, अहमदाबाद के गुजरात विद्यापीठ एवं साबरमती आश्रम, घाटकोपर-मुंबई का सर्वोदय अस्पताल, चैतन्य कश्यप फाउन्डेशन का अहिंसाग्राम, हैदराबाद काअभिराम एपार्टमेन्ट, आदि आदि अनेक। इन सभी आदर्शरूप प्रत्यक्ष उदाहरणों एवं हमारे ग्रंथ निष्कर्षों से प्रेरित होकर, इस ग्रंथ में विस्तार से वर्णित 'जिनाराधक वास्तुग्राम' की परिकल्पना से प्रभावित होकर, ऐसे सात्त्विक सप्तव्यसन-रहित, नैसर्गिक, प्रकृति-पल्लवित, अध्यात्म की नींव पर आधारित वास्तुग्रामों के सर्वत्र निर्माणों की दृढ भावना-संकल्पना किसी भव्यात्मामें समुत्पन्न होगी? वास्तु-परामर्श (आवास-निवास-गृह - व्यवसाय-कार्यालय) ग्रंथ गवाह है, अनुभव बोलता है वास्तु गलत होने से अनेक नुकसान उठाने पड़ते हैं। अतः अपने घर/कार्यालय का वास्तुदोष सुधारें, सर्व शुभ-लाभ-शांति-स्वास्थ्य पायें। देश-विदेश के जाने माने अनुभवी वास्तु परामर्शकों से आज ही परामर्श प्राप्त करें: बेंगलोर 080-2225 1552./2666 7882 / 65953440 मोबाईल - 0-96112 31580 - जैन वास्तुसार

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