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घर के उदय का प्रमाण “राजवल्लभ' में इस प्रकार कहा है :
घर का विस्तार जितना हो उसके सोलहवें भाग में चार हाथ जोड़कर उतना घर का उदय किया जाय तो यह ज्येष्ठमान का उदय होगा, साढ़े तीन हाथ बढ़ाकर घर का उदय किया जाय तो मध्यममान का उदय होगा और तीन हाथ बढ़ा कर उदय किया जाय तो यह कनिष्ठ मान का उदय होगा। ये तीनों प्रकार के उदय घर के भूमितल से लेकर पाटड़े के शीर्ष तक का गिना जाता है। इन प्रत्येक उदय के दूसरे तीन तीन भेद से बारह प्रकार के उदय माने जाते हैं। इनमें से ग्यारह प्रकार के उदय गिने जाते हैं, जैसे ज्येष्ठमान के उदय के चार हाथ के 16 अंगुल में अनुक्रम से 20, 18 और 16 अंगुल मिलाये जाय तोज्येष्ठ उदय के भेद होंगेजो इस प्रकार है :
96 + 20 = 116 अंगुल का ज्येष्ठज्येष्ठ उदय, 96 + 18 = 114 अंगुल का ज्येष्ठमध्यम उदय तथा 96 + 16 = 112 अंगुल का ज्येष्ठ कनिष्ठ उदय। मध्यम मान के उदय के साढ़े तीन हाथ के 84 अंगुल में अनुक्रम से 27, 21 और 15 अंगुल मिलाने से मध्यम उदय के तीन भेद होते हैं जो इस प्रकार हैं - 84 + 27 = 111 अंगुल का मध्यम ज्येष्ठ उदय, 84 + 21 = 105 अंगुल का मध्यममध्यम उदय तथा 84 + 15 = 99 अंगुल का मध्यम कनिष्ठ उदय। कनिष्ठ मान के उदय के तीन हाथ के 72 अंगुल में अनुक्रम से 27, 21 और 15 अंगुल जोड़ने से कनिष्ठ उदय के तीन भेद होंगे जो इस प्रकार हैं - 72 + 27 = 99 अंगुल का कनिष्ठ ज्येष्ठ उदय, 72 + 21 = 93 अंगुल का कनिष्ठ मध्यम उदय तथा 72 + 15 = 87 अंगुल का कनिष्ठ कनिष्ठ उदय। इस तरह 12 प्रकार के उदय होते हैं। लेकिन इसमें मध्यम कनिष्ठ तथा कनिष्ठ ज्येष्ठ ये दोनों उदय 99 अंगुल के होने के कारण दोनों को एक गिनकर ग्रन्थकार ने ग्यारह भेद बतलाये हैं।
* विशेष स्पष्टता के लिये घर का उदयचक्र * उत्तम
मध्यम | कनिष्ठ मूलभेद 3 | उ उ.उ. उ.म.उ.क. म म.उ.म.म.म.क. क क.उ.क.म.क.क पेटा भेद 12 | 1 | 2 | 3 | 4 5 6 7 8 9 10 11 12 96969696 84 84 | 84 84727272172 |
20 | 18 | 16 27 2115-27 | 21 | 15 196 116/114/112| 84 |111|105|997219993787 अंगुल संख्या
ये बारह प्रकार के उदय घर के विस्तार के सोलहवें भाग में मिला कर घर का उदय किया जाता है। "बृहत् संहिता' में भी कहा है कि - घर के विस्तार सोलहवें भाग में
जै वास्तुसार
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