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द्वार के उदय का दूसरा मत
घर की ऊँचाई के तीन भाग कर के, उसमें से एक भाग कम करें। दो भाग की ऊँचाई के बराबर द्वार की ऊँचाई रखना और ऊँचाई सेआधी चौड़ाई रखना यह दूसरा प्रकार है। गृह प्रवेश का शुभाशुभ प्रकार
"समरांगण' में बताया गया है : घर में प्रवेश करने के लिये प्रथम उत्संग नाम का प्रवेश, दूसरा हीनबाहु अर्थात् सव्य नाम का प्रवेश, तीसरा पूर्णबाहु अर्थात् अवसव्य नाम का प्रवेश और चौथा 'प्रत्यक्षाय' अर्थात् पृष्ठभंग नाम का प्रवेश - ये चार प्रकार के प्रवेशमाने जाते हैं। इनका शुभाशुभ लक्षण नीचे समझाया गया है:
मुख्य घर का द्वार तथा प्रथम प्रवेश द्वार अर्थात् (दरवाज़ा) देहली का द्वार एक ही दिशा में हो उसे 'उत्संग' नाम का प्रवेश कहते हैं। इस प्रकार का प्रवेश सौभाग्यकारक, संतानवृद्धिकारक, धनधान्य देनेवाला और विजय करानेवाला है।
जिस मुख्य घर का द्वार प्रवेश करते समय बांई ओर हो अर्थात् प्रथम देहली (दरवाज़ा) द्वार में प्रवेश करने के बाद बांई ओर मुड़कर अगर घर में प्रवेश होता हो, तो यह हीनबाहु प्रवेश है। इस प्रकार के प्रवेश को वास्तुशास्त्र के विद्वान निदित कहते हैं। इस प्रकार के प्रवेशवाले घर में रहनेवाले मनुष्य कम धनसंपत्तिवाले, कम मित्रवाले, स्त्री के आधीन रहनेवाले और अनेक प्रकार की व्याधियों से पीडित होते हैं।
प्रथम प्रवेश करते समय मुख्य घर का द्वार दाहिनी ओर हो अर्थात प्रथम देहली / दरवाज़े के द्वार में प्रवेश करने के बाद दाहिनी ओर मुड़ कर मुख्य घर में प्रवेश होता हो उसे 'पूर्णबाहु' प्रवेश कहते हैं। ऐसे प्रवेशवाले घर में रहनेवाले मनुष्य को पुत्र, पौत्र, धन-धान्यऔर सुख की निरंतर प्राप्ति होती है।
मुख्य घर के पृष्ठभाग में घूम कर मुख्य घर में अगर प्रवेश होता हो तो यह 'प्रत्यक्षाय' अर्थात् 'पृष्ठभंग' प्रवेश कहलायेगा। ऐसे प्रवेशवाला घर भी 'हीनबाहु' प्रवेशवाले घर की तरह निंदनीय है। घर की ऊँचाई का फल
__ पूर्व दिशा में अगर घर ऊँचा हो तो लक्ष्मी का विनाश होता है। दक्षिण दिशा में ऊँचा हो तो घर धनसंपत्ति से पूर्ण रहता है। अगर घर पश्चिम दिशा में ऊँचा हो तो धनधान्य की वृद्धि करनेवाला होता है और अगर घर उत्तर दिशा में ऊँचा हो तो वसतिरहित उज्जड़ रहता है। (अतः दक्षिण और पश्चिम दिशाओं में घर ऊँचा हो तथा पूर्व और उत्तर में घर नीचा रहना चाहिये। - सं)
जैन वास्तुसार