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दो शालावाले जिस घर के अग्र भाग में तीन अलिंद तथा दाहिनी एवं बांई ओर दो दो अलिंद और पीछे के भाग में एक अलिंद हो वह 'बुद्धि' नामक घर है। ऐसा घर सद्बुद्धि की वृद्धि करनेवाला सिद्ध होता है।
दोशालावाले जिस घर की चारों ओर दो दो अलिंद हो वह 'सुव्रत' घर है। ऐसा घर सर्व प्रकार की सिद्धि करनेवाला है। जिस द्विशाल घर के आगे तीन अलिंद और बाकी की तीनों दिशाओं में दो दो अलिंद हो वह 'प्रासाद' घर है।
जिस द्विशाल घर के आगे चार अलिंद और पीछे तीन अलिंद हो वह 'द्विवेध' घर
इस प्रकार सूर्य आदि आठ प्रकार घर का वर्णन किया। ये सब अपने अपने नामानुसार फल देनेवाले हैं।
सूर्य 1
वासव 2
वीर्य 3
कालाक्ष 4
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सुव्रत 6
प्रासाद 7
द्विवेध8
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विमलादि, सुंदरादि, हंसादि, अलंकितादि, प्रभवादि, प्रमोदादि, श्रीभवादि, चूडामणि और कलशादि इन सब आदित्यादि घरों की दिशा और अलिंद के भेद द्वारा सोलह सोलह प्रकार के घर बनते हैं। त्रैलोक्य सुंदर आदि चोसठ प्रकार के घर राजाओं के लिये हैं। इस काल में गोल घर बनाने का चलन नहीं है, किन्तु राजाओं के लिये मना नहीं है। घर के उदय का मान समरांगण में कहा है
घर का जो विस्तार हो उसके सोलहवें भाग में चार हाथ जोड़ने से जो संख्या प्राप्त हो उतने नाप का घर के पहले तले का उदय करना अच्छा है। अथवा घर का उदय सात हाथ हो तोज्येष्ठ मान का उदय, छे हाथ हो तो मध्यम उदय तथा पाँच हाथ हो तो कनिष्ठ मान का उदयसमझना चाहिए।
जैन वास्तुसार
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