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विलास 1
बहुनिवास 2
पुष्टिद 3
कोपसन्निभ4
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महान्त 1
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प्रतापवर्द्धन ।
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यहाँ जो शांतनादि सोलह प्रकार के घर कहे इनके प्रत्येक के पूर्व, दक्षिण और पश्चिम दिशा में द्वारवाले घर करने से तीनतीन और भेद होते हैं। इस प्रकार इन सब के चार चार भेद होते हैं जो कुल मिलाकर चौसठ भेद बनते हैं। दिशा के भेद द्वारा द्वार की स्पष्टता ___ शांतनु घर का द्वार उत्तर दिशा में, शांतद घर का द्वार पूर्व में, वर्द्धमान घर का द्वार दक्षिण में तथा कुर्कुट घर का द्वार पश्चिम दिशा में है। इसी प्रकार दूसरे भी चार चार घरों के मुख समझ लेने चाहिए। सूर्य आदि आठ घरों का स्वरुप
जिस द्विशाल घर के अग्रभाग में तीन अलिंद हो तथा बांई एवं दाहिनी ओर स्तंभ सहित एक एक शाला हो वह 'सूर्यघर' कहलायेगा।
जिस द्विशाल घर के अग्रभाग में चार अलिंद हो तथा दाहिनी एवं बांइ तरफ एक एक शाला हो यह 'वासव' घर है। ऐसे घर में युगांत स्थिरता होती है।
जिस द्विशाल घर के आगे के भाग में तीन अलिंद तथा पीछे दो अलिंद और दाई एवं बांई ओर एक एक अलिंद हो वह 'वीर्य' घर है। यह चारों वर्गों के लिये हितकारक है। जिस द्विशाल घर के पीछे दो, अग्रभाग में दो और दाहिनी बाजुपर एक अलिंद हो वह 'काल' घर है। ऐसा घर दुर्भिक्ष आदि दंड निश्चित करनेवाला है। .
जन-जन का उन वास्तसा
जैन वास्तुसार
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