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आदि भी पथ्थर के बनाने चाहिए तथा लकड़ी के घर आदि में स्तंभ आदि लकड़ी के निर्मित किये जाने चाहिए।
_ दूसरे वास्तु की (मकान की) लकड़ियाँ आदि चीजें न लेनी चाहिए इस विषय में कहा गया है कि देवमंदिर, कुआँ बाव, स्मशान, मठ और राजमहल इत्यादि के पथ्थर ईंट अथवा लकड़ियाँ एक राई के दाने के बराबर भी अपने घर में उपयोग में नहीं लेना चाहिए।
"समरांगण सूत्रधार" में भी कहा है : दूसरों के वास्तु (मकान) के पड़े हुए पथ्थर लकड़ी आदि द्रव्य दूसरे वास्तु के उपयोग में न लेने चाहिए। अगर दूसरों के वास्तु की वस्तु मंदिर में प्रयुक्त की जाय तो पूजा-प्रतिष्ठा हो नहीं सकती और अगर घर में प्रयुक्त की जाय तो उस घर में स्वामी का वास नहीं होता। ___ अपने मकान में ऊपर की मंज़िल में सुंदर जाली इत्यादि रखना तो ठीक है, किंतु अगर दूसरों के मकान में जालियाँ हों तो अपनी जालियाँ उसके नीचे आयें उस प्रकार न रखनी चाहिए। घर की नीचे की मंज़िल की पीछे की दीवार में कभी भी जाली इत्यादिन रखना चाहिए ऐसाप्राचीन शास्त्रों में कहा है। ___ "शिल्पदीपक" में भी कहा है कि : पीछे की दीवार में सुई के मुख के बराबर भी छिद्र अगर रखा जाय तो मंदिर में देव की पूजा नहीं हो सकती तथा घर में राक्षस क्रीडा करते हैं। अर्थात् मंदिर अथवा घर में पीछे की दीवार में नीचे की मंज़िल में प्रकाश के लिये खिड़कियाँ आदि हों तो अच्छा नहीं है।
_नगर अथवा गाँव के ईशान कोण में घर बनाना नहीं चाहिए। यह उत्तम मनुष्यों के लिये अशुभ है किंतु अंत्यजजाति के मनुष्यों के लिये वृद्धिकारक है। शयन करने की रीत
देव, गुरु, अग्नि, गाय और धन की ओर पैर रखकर, उत्तर में मस्तक रखकर, नग्न हो कर या गीले पैर कभी भी शयन करना नहीं चाहिए।
धूर्तजन एवं मंत्री के निकट, दूसरों की वास्तु की हुई जमीन में तथा चौक (चौराहे) में कभी भी घर न बनायें।
घर अथवा देवमंदिर का जीर्णोद्धार करना हो तो उसका मुख्य द्वार चलायमान न करें। अर्थात् मुख्य द्वार मूलतः जिस दिशा में हो, जिसमान का और जिस स्थान पर हो उसी दिशा में उसीमान का और उसी स्थान पर रखना चाहिए।
"विवेक विलास" में कहा है कि : अगर घर देवमंदिर के पास हो तो दुःख, चौक में हो तो हानि तथा धूर्त व्यक्ति या मंत्री के घर के पास हो तो पुत्र तथा धन का क्षय होता
है।
जैन वास्तुसार
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